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________________ और फलित दोनो भागो के ऊपर ज्योतिषग्रन्थ पाये जाते है । जैनाचार्यों ने गणित ज्योतिष सम्बन्धी विषय का प्रतिपादन करने के लिए पाटीगणित, बीजगणित रेखागणित, त्रिकोणमिति, प्रतिभागणित, १ गोन्नतिगणित, पचागनिर्माण गणित, जन्मपत्रनिर्माणगणित, ग्रहयुति उदयास्तसम्बन्धी गणित एव यन्त्रादि सम्बन्धित गणित का प्रतिपादन किया है। ___जैन गणित के विकास का स्वर्णयुग छठवी से बारहवी तक है। इस बीच अनेक महत्वपूर्ण गणित ग्रन्थो का प्रथन हुआ है। इसके पहले कोई स्वतन्त्र रचना उपलब्ध नही है। कतिपय आगमिक ग्रन्थो मे अवश्य गणितसम्बन्धी कुछ बीजसूत्र जाते है । सूर्यप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति प्राकृत की रचनाए होने पर भी जैन गणित की अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा प्राचीन रचनाए है । इनमे सूर्य और चन्द्र से तथा इनके ग्रह तारामण्डल प्रादि से सम्बन्धित गणित तथा विद्वानो का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। इनके अतिरिक्त महावीराचार्य (९वीं सदी) का गणितसार सग्रह, श्रीघरदेव का गणितशास्त्र, हेमप्रभसूरि का त्रैलोक्यप्रकाश और सिंहतिलकसूरि का गणिततिलक आदि ग्रन्थ सारगर्भित और उपयोगी है । ___ फलित ज्योतिष से सम्बन्धित होराशास्त्र, सहिताशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र, प्रश्नशास्त्र और स्वप्नशास्त्र आदि पर भी जैनाचार्यों ने अपनी रचनमो मे पर्याप्त प्रकाश डाला है और मौलिक ग्रन्थ भी दिये है। इस प्रसग में चन्द्रसेन मुनि का केवलज्ञान होरा, दामनदिके शिष्य भट्टवासरि का आयज्ञानतिलक, चन्द्रोन्मीलनप्रश्न, भद्रबाहुनिमित्तशास्त्र, अर्घकाण्ड, मुहूर्तदर्पण, जिनपालगणी का स्वप्नचितामणि आदि उपयोगी ग्रन्थ है। जैसा ऊपर कहा गया है, इस लेख मे सस्कृत साहित्य के विषय मे जैनविद्वानो के मूल्यवान सहयोग का केवल दिग्दर्शन ही कराया गया है। संस्कृत साहित्य के प्रेमियो को उन आदरणीय जैन विद्वानो का कृतज्ञ ही होना चाहिए । हमारा यह कर्तव्य है कि हम हृदय से इस महान् साहित्य से परिचय प्राप्त करे और यथासम्भव उसका सस्कृत समाज मे प्रचार करे। Ahimsa ideology and Family Planning Dr Bool Chand Director, Ahimsa Shodh Peeth [Doctor Boolchand the Ex-Director of Ahimsa Shodh Peeth and professor Panjab University, Chandigarh, retired I. C. S. He has done the work of highest level by spreading the message of Indian Culture in the world. The most important and extraordinary work which has been done in the Abimsa Shodh Peeth is due to him and his efforts. • 1
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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