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________________ जैन पद साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन डा० कस्तुरचन्द कासलीवाल एम०ए०पी०एच-डी०, जयपुर हिन्दी मे काव्य, चरित कथा एव पुराण साहित्य के साथ-साथ जैन कवियों ने पद साहित्य के विकास में भी पूर्ण योग दिया। पद साहित्य वैराग्य एव भक्तिमार्ग का उपदेश देने मे बहुत सहायक सिद्ध हुआ है । जैन शास्त्र सभानो मे शास्त्र प्रवचन के पश्चात् भजन एव गीत वोलने की प्रथा सैकडो वर्षों से चली आ रही है इस दृष्टि से भी इन कवियो ने पद रचना में अधिक रुचि दिखलाई । यद्यपि यह कहना कठिन है कि सर्वप्रथम किस कवि ने हिन्दी मे पदसाहित्य की रचना की थी लेकिन इतना अवश्य है कि १४-१५वी शताब्दी में पद रचना सामान्य वात हो गई । १५वी शताब्दी के एक प्रसिद्ध विद्वान् सकलकीति का पद देखिये तुम वलिमो नेमजी दोय घटिया । जादव वस जब ब्याहन पाए, उनसेन धी लाडलीया ।। तुम० ॥ राजमती विनती कर जोरे, नेम नाल मानत न हीया ॥ तुम० ॥ राजमती सखीयन सु वोले, गिरनार भूधर ध्यान परीया || तुम० ॥ सकलकीर्ति मनु दास चारी, चरणे चित्त लगाय रहीण ॥ तुम० ॥ सकलकीति के पश्चात् ब्रह्म जिनदास के पद भी मिलते है । आदिनाथ स्तवन के रूप मे लिखा हुमा उसका यह पद बहुत सुन्दर एव परिष्कृत भापा मे निबद्ध है। हवी शताब्दी में होने वाले कवियो मे घीहल, पूनो, चराज आदि कवियो के पद उल्लेखनीय हैं। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारी की ग्रन्थ-सूची चतुर्थ भाग मे लेखक ने १४० से अधिक जैन कवियो के पदो की सूचना दी है। ___ इधर हिन्दी पदो के प्रमुख पुरुषकर्ता महाकवि कबीरदास, मीरों एव सूरदास सगुणोपासक कवि थे। इन कवियो की भक्ति-धारा से जैन कवि भी अप्रभावित नहीं रह सके और कालान्तर मे उनकी रचनाओ पर भी इन भक्त कवियो का अवश्य प्रभाव पड़ा । तुलसीदास के समकालीन जैन कवि वनारसीदास एवं रूपचन्द्र थे । तुलसीदास कट्टर रामोपासक थे और अपनी रामायण के माध्यम से रामकथा का घर-घर प्रचार किया था। इसलिए तुलसी की रामभक्ति से भी जैन कवि अछूते नहीं रह सके । यद्यपि वे मात्मा, परमात्मा एव वैराग्य के गुण गाते रहे किन्तु भगवद्भक्ति की भोर भी उनका ध्यान गया और तीर्थंकरो की भक्ति में इन्होने पद लिखने प्रारम किये। १५-१६वी शताब्दी के पश्चात् जैन कवियो ने सैकडो-हजारो की संख्या मे पद लिखे। कितने ही कवियो ने तो २०० से भी अधिक पद लिख कर उस साहित्य की ओर अपनी रुचि का प्रदर्शन किया। इन हिन्दी पद निर्माताओ मे भट्टारक रत्लकीति, भट्टारक कुमुदचन्द्र, रूपचन्द्र, वनारसीराम, जगजीवन, जगतराम, द्यानतराम, भूधरराम, बस्तराम, नवलराम, बुधजन, छत्रपति, भागचन्द्र आदि के नाम उल्लेखनीय है । यदि इन जैन कवियो के पदो की गणना की जावे तो यह सभवत दस हजार से कम नहीं होगी लेकिन अभी तक ५-७ कवियो के अतिरिक्त शेष कवियो के बारे में साहित्य जगत् को कोई विशेष जानकारी नहीं है। इन कवियो ने बड़े ही सुन्दर शब्दो मे
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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