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________________ धर्म और संस्कृति णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाण, रामो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । प्रथं --- अरहन्तो को नमस्कार हो, सिहो को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यों को नमस्कार हो और लोक के सब साबुनों को नमस्कार हो । पचणमोमारो, मंगल है | एसो सव्य पावाचणासष्णो, मगलाणं च सव्र्वोति, पठमं होइ मंगलम | यह नमस्कार मंत्र सब पापों का नाम करने वाला है और सब मंगलों में पता जिन सासणत्य सारो, चउदस पुव्वाण जो समुद्धारो, जस्समणे नवकारो ससारे तस्य किं कुराई । एसो मगल निलो भर्यादिलो सगल सघ सुवणश्री. नवकार परममतो चिति, अमित सुह देई । नव कार प्रो अत्रो सारो, मंतो न अत्यि तिर लोए, तम्हाहू अरणदिण चिय, पठियब्वो परम भक्तीए । हरद्द दुह कुणइ सुह जणइ जर्म सोसए भवसमुख, इह लोय परलोइय सुहाण, मूल नमोक्कारो । यह णमोकार मंत्र जिन शासन का सार चतुर्दश पूर्वो का समुद्धार है। जिसके मन में यह णमोकार महामन्त्र है, ससार उसका कुछ भी नही विगाड़ सकता । यह मन्त्र मंगल का आगार, भय को दूर करने वाला, सम्पूर्ण चतुविव सव को सुख देने वाला और चिन्तन मात्र ते अपरिमित शुभफल को देने वाला है। तीनों लोकों में णमोकार मंत्र से बढ़कर कुछ सार नहीं है। इसलिए भक्तिभाव और श्रद्धापूर्वक णमोकार मंत्र को पढ़ना चाहिए। यह दुखों का नाश करने वाला, सुखो को देने वाला, यक्ष को उत्पन्न करने वाला और संसार रूपी समुद्र से पार करने वाला है। इस मन्त्र के समान इहलोक और परलोक मे अन्य कुछ भी सुखदायक नहीं है । मन्त्र ससार सारं, त्रिजगदनुपर्म सर्व पापारिमन्त्रं, ससारोच्छेद मन्त्र, विषम विपहरं कर्म निर्मूल मन्त्रम् । मन्त्र सिद्धि प्रदान शिव सुखजननं, केवल ज्ञान मन्त्रम्, मन्त्र श्री जैन मन्त्रं जप जप जपितं जन्मनिर्वारणमन्त्रन् । श्राकूप्ट सुर सम्पदां विदद्यते मुक्तिश्रियो कम्यतां, उच्चाट विपदां चतुर्गतिभुवां, विद्वेप मास्मैन सामु स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो मोहस्य सम्मोहनं. पापात्पंच नमस्त्रिया क्षरमयी, सारावना देवता । [ ३५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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