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________________ उपाध्य अपने नाम को अत्तरशः चरितार्थ किया श्रो देशराज चौधरी उपाध्यक्ष, देहली कार्पोरेशन, वेहली मूक समाज-सेवक स्व० लाला तनसुखरायजी जव भी कभी मुझे दरियागज के निर्माण करने वाले सहयोगियो की याद आती है तो स्वर्गीय श्री लाला तनसुखरायजी सरल प्रकृति, खादी की वेशभूपा, मधुर वाणी वाली सौजन्य की मूर्ति तत्काल पाखो के सामने आ जाती है । लालाजी दिल्ली नगर के प्रतिष्ठित नागरिको मे अपने प्रकार का अपना ही स्थान रखते थे। सन् १९४२ मे विश्ववन्य पूज्य बापूजी के 'भारत छोडो' के उद्घोप पर देशभक्तो ने जान-माल की बाजी लगाकर जो कार्य किए वे अभूतपूर्व थे। उन्हे दवाने के लिए विदेशी सरकार ने जो दमन की नीति अपनाई, उससे जो विपम परिस्थिति पैदा हुई उसका सामना करने के लिए दिल्ली में बनाई गई रिलीफ सोसायटी के निर्माण करने में मुझे बहुत बडा योग श्री लालाजी का मिला था जिससे राजनैतिक बन्दियो पर चलाए अभियोगो और उनके पीडित परिवारो को जो सहायता इस सोसायटी के द्वारा की गई उससे देशभक्तो को उत्साह मिला और बल मिला। __इसी प्रकार से बहुत से रचनात्मक कार्यों में लालाजी आगे बढकर सहयोग देते थे। प्रभु ने उन्हे पुष्कल धन भी दिया था और साथ ही विनम्र स्वभाव भी, जो कि ससार मे बहुत कम व्यक्तियो को मिल पाता है। सचमुच वह सक्रिय निष्ठावान् गांधीवादी मनोवृत्ति के महान् व्यक्ति थे। किसी भी दुखी को देखकर वह उसके दुख दूर करने मे देर नहीं लगाते थे। जीवन के मन्तिम वर्षों मे रुग्ण होते हुए भी वह रचनात्मक कार्यों को सफल बनाने मे पूर्ण मनोयोग से कार्य करते रहे। जहां उन्हें दिल्ली तथा विशेषकर दरियागज की जनता तथा रचनात्मक कार्य करने वाली सामाजिक सस्थाए सदा याद करती रहेगी वहाँ ऐसे अनेक व्यक्ति जिनकी वह समय-समय पर सहायता करते थे, उन्हे याद रखेंगे। बहुत अच्छा हो यदि हम सामाजिक कार्यकर्ता उनके शुभ गुणो को अपने जीवनो में धारण करके उनकी याद मनाए और उनके परिवार वाले उनकी उन परम्परामो मैं रचनात्मक, शारीरिक, माल्मिक, सामाजिक मनोयोग देकर उनके अनुवत रहने का सत् प्रयत्न करते रहे। ___ उन्होने सदैव अपने नाम को अक्षरश' चरितार्थ किया। उन्होने समाज को अपने तन से सुख दिया और सदैव नेक राय दी। उनके निधन से समाज को जो क्षति हुई है वह पूरी नहीं हो सकती। १४ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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