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________________ भारतीय एकत्व की भावना व्योहार राजेन्द्र सिंह सेठियाकुज, जबलपुर भारतीय एकत्व की भावना का आधार एक ब्रह्म की भावना है जोकि सब जगत में व्याप्त है । इसी के प्रश रूप सारे जगत् के प्राणी है । वह सारा जगत् उसी एक ब्रह्म का विस्तृत रूप है । भिन्न-भिन्न देव उसी एक तत्व के विभिन्न रूप हैं। ऋग्वेद मे इस भावना के समर्थन मे अनेक मंत्र मिलते है। -- एक एवाग्नि बहुधा समिद्ध एक सूर्यो विश्व अनु प्रभूव । एकैवोषा सर्वम् इद विभात्येकंवा इद वि बभूव सर्वम् ॥ ( दाशदार) इसी का समर्थन हमे उपनिषदों में भी मिलता है जिनमें कहा गया है कि एक ही देव अनेक वर्ण होकर बहुत शक्तियो के योग से अनेक रूप हो जाता है। ' 5 ऍको वर्णो बहुधा शक्ति योगात् । वर्णाननेकान्त् निहितार्थी दघाति ॥ आगे चलकर इतिहास और पुराणो ने इसी भावना को लेकर शिव, विष्णु प्रादि देवताओ की एकता का प्रतिपादन किया तथा प्राणी मात्र की एकता की स्थापना की । कर्मों के विभाग के आधार पर वर्णों का विभाजन हुआ किन्तु उनकी एकता पर ही समाज प्राधारित रहा । महाभारत मे एक स्थान पर कहा गया है कि सभी वर्ण ब्रह्म से उत्पन्न होने के कारण ब्राह्मण ही है । सर्वे वर्णब्राह्मणा ब्रह्मजाश्च । भागवत धर्म के उदय होने पर भी उसी को और धागे बढाया गया । ईश्वर के एक नाम के आधार पर उसके सभी उपासको और जातियो की एकता का प्रतिपादन किया किरातहूपान्धपुलिन्द वुल्कसा आभीरुकथा यवना चेत्वे च पापा मदुपाश्रयाश्रया शुध्यन्ति तस्मै भविषक्तिम । खसादय । पुराणो मे समग्र देश की एकता की भावना भी विकसित हुई। वैसे तो उसका मूल्य हमें ऋग्वेद के पृथ्वी सूक्त मे मिलता है जिसमे कहा गया है कि यह भूमि हमारी माता है और हम उसके पुत्र है -- माता भूमि पुत्रो ग्रह प्रथिव्या. । किन्तु भारत देश का स्पष्ट नाम पुराणो मे ही मिलता है। की प्रशसा करते हुए कहा गया है कि हे भारत भूमि तुम धन्य हो - इस गाते है ३१६ ] www — विष्णुपुराण मे इस देश प्रकार देवता भी गीत
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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