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________________ शिक्षा प्रेय और श्रेय का मार्ग है -. :- ------- उसकी वास्तविक उपलब्धि विनय, श्रम और साधना से प्राप्त होती है। प्राचीन भारत में प्राचार्य शिष्यो के लिए दीक्षात के समय अमूल्य लाभकारी उपदेश देते थे। 'तैत्तिरीयोपनिषद' के अनुशासन मे इसी श्रेयधुद्धि निषेधविहीन विधायक के सकल्प का उदात्त स्वर है। इस उपदेश के पढने से छात्रो में पूज्यबुद्धि और शिवसकल्प जागे, राष्ट्र, मानवता उनके पुरुषार्थ से लाभान्वित हो और वे स्वय जीवन की सर्वोच्च सार्थकता उपार्जित करें। दीक्षांत के समय शिष्यों को प्राचार्य का उपदेश सत्यं वद : धर्म चर । स्वाध्यायान्मा प्रमद । सत्यान्न प्रमदितव्यम् । धर्मान्न प्रमदितव्यम् । कुशलान्न प्रमदितव्यम् । भूत्यै न प्रमदितव्यम् । स्वाध्याय-प्रवचनाभ्या न प्रमदितव्यम् । मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव । अतिथि देवो भव । राष्ट्रदेवो भव । यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि । नो इतराणि । यान्यस्माक सुचरितानि । तानि त्वयोपास्यानि । नो इतराणि । श्रद्धया देयम् । अश्रद्धया देयम् । श्रिया देयम् । हिया देयम् । भिया देयम् । सविदा देयम् । अथ। यदि ते कर्म विचिकित्सा वा वृत्तविचिकित्सा । वा स्यात् । ये तत्र ब्राह्मणा समशिन. । युक्ता आयुक्ता । अलूक्षा धर्मकामा स्यु । यथा ते तत्र वर्तेरन् तथा तत्र वर्तथा.। एष आदेश । एप उपदेश. । एपा वेदोपनिषत् । एतदनुशासनम् । एवमुपासितव्यम् । एवमुचंतदुपास्यम् । भो. स्नातका. एवम् एतत् मनसि । दृढ़े निधाय युप्मामि सदा सच्छीले। समुदाचारे च वर्तितव्यम् । सत्य बोलो । धर्म का आचरण करो। स्वाध्याय मे प्रमाद मत करो। सत्य की उपेक्षा मत करो। धर्म की उपेक्षा मत करो। कल्याण और कुशलता की उपेक्षा मत करो। समृद्धि की [ ३१३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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