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________________ सामयिक आवश्यक अपोल व्यवस्थित ढग से अ. भा० आबू मन्दिर टैक्स विरोधी आन्दोलन को सफलतापूर्वक चलते हुऐ आज लगभग चार माह व्यतीत हो गये । पर कमेटी के कार्यकर्ताओ ने आजतक कभी भी समाज के समक्ष धन प्राप्ति के लिये अपील नहीं की और न भविष्य मे ऐसा विचार ही है कि सार्वजनिक अपील की जाय क्योकि कमेटी के कार्यकर्ता इस बात को अच्छी तरह जानते व समझते है कि ऐसा करने से हमारी सारी शक्ति इस ओर लग जाएगी जिससे समय का व्यर्थ दुरुपयोग होगा । लेकिन यह सभी भाई महसूस करते है कि यह कार्य महान् है और अर्थाभाव के कारण उसे हरगिज सफलता न मिल सकेगी । इसी बात को ध्यान में रखते हुए मारवाड के जिन-जिन स्थानो मे मै डेपुटेशन के साथ गया वहा के भाइयो ने बिना अपील किए ही मुझे थैलियां भेट की और पाश्वासन दिया कि आवश्यकता पड़ने पर हम और भी अधिक आर्थिक सहायता प्रापको देंगे। इसके अतिरिक्त और भी कई जगह के दानियो एव इस आन्दोलन से प्रेम रखने वाले महानुभावो की ओर से हमे बिना अपील किए रुपयो की प्राप्ति हुई है। इसलिए यह निःसकोच कहा जा सकता है कि समाज माबू आन्दोलन की सार्थकता को समझने लग गया है। प्रस्तु घनिक वर्ग स्वय इस ओर ध्यान देकर प्राबू पान्दोलन को सफल बनायेगे ही परन्तु इस समय जिस जरूरत को अधिक महसूस कर रहे है वह जरूरत है उत्साही युवको के सहयोग की जो एक बार धर्म और समाज की मान-मर्यादा की रक्षा हेतु तथा इस जग को जीतने के लिये अपने सर्वस्व की बाजी लगावे। समाज के उत्साही युवको के अलावा हम अपने समाज के विद्वानो, विद्यार्थियो और वकीलो से भी जोरदार अपील करेंगे कि ग्रीष्मावकाश मे सभी भाई अपने-अपने इलाके में पाबू आन्दोलन के प्रचार का अगर बीडा उठा ले तो एक बारगी जो कार्य वेतनभोगी प्रचारको से होना असम्भव है उसे आप लोग सम्भव करके दिखा सकते है। हैदराबाद सत्याग्रह के समय प्रार्य समाज के छोटे-छोटे बच्चो से लेकर बड़े-बूढ़ो तक ने अपने को उस आन्दोलन मे अर्पण कर दिया था उनके सामने सिर्फ एक ही लक्ष्य था और वह था. मार्य धर्म और उसकी संस्कृति की रक्षा । कई आर्य भाइयो ने तो हैदराबाद की बलिवेदी पर अपने अमूल्य जीवन को अर्पण कर दिया था उस समय उनकी सारी शक्ति उसी ओर लगी हुई थी । ऐशो-आराम को उस वक्त उन्होने ताक मे रख दिया था और हैदराबाद की ओर चल पड़े थे और उन्होने अपने त्याग तथा बलिदानी भावों से एक बार ससार को दिखा दिया था कि पार्यो मे अभी अपने पूर्वजो का रक्ताश मौजूद है । फिर क्या बात है कि हमारे ही पूर्वजो के बनवाये विशाल एवं दर्शनीय मन्दिर तथा उनमें विराजमान सागोपाग सौम्य मूर्तियो के दर्शनो पर सिरोही की स्वेच्छाचारी सरकार मनमाना टैक्स हर यात्री पर चाहे वह दिगम्बर, श्वेताम्वर हो या कि हिन्दू हो वसूल कर उसे ऐश-परस्ती मे खर्च करे। उसे क्या अधिकार है कि जैनो के स्वत्वो को अपहरण कर अपनी मनमानी चलाये और टैक्स बढ़ाती रहे। जिस दिन से प्राबू पान्दोलन का श्रीगणेश हुमा और जैसे-जैसे यह आन्दोलन अधिक उग्न और व्यापक होकर जैन समाज की सीमा को लांघ कर सर्वव्यापी बना तब से हमे कुचलने २९. ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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