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________________ आबू का माधुनिक रूप आबू पर्वत पर बीसवी शताब्दी मे निर्माण की दृष्टि से जो परिवर्तन हुए है, उनसे भावू के वर्तमान स्वरूप मे आधुनिकता की एक नई छाप-सी लगी दिखाई देती है, और उसका महत्व भी अब कही अधिक बढ गया है। ब्रिटिश सरकार के आगमन और राजपूताना स्टेट की ऐजेन्सी की स्थापना से प्रावू राजपूताना और मध्यभारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गया है। इसी लिए आबू पर्वत पर जहा मन्दिर और देवालय है, वहाँ आधुनिक ढग के महाराजा जयपुर, जोधपुर, अलवर, सिरोही, बीकानेर, लिमडी, भरतपुर, धौलपुर, सीकर, जैसलमेर, खेत्री आदि के ग्रीष्मकालीन महल (Summer Palaces), और ऐजेन्ट टू दी गवर्नर-जनरल, रेजीडेन्सी, आदि की भव्य इमारतें भी है। क्रीडा, नौकाविहार और भ्रमण के आधुनिक साधन भी यहाँ प्रस्तुत है । जहां मन्दिरो के घण्टो और घडयालो की ध्वनि सुनाई देती है, वहाँ किसी क्लव से पियानो, वायलिन और यूरोपियन सगीत की भी ध्वनि पाप सुन सकते है। ग्रीष्म ऋतु मे तापमान अस्सी और नब्बे डिग्री के बीच रहने के कारण, गमिया बिताने के लिए तीर्थ-यात्रियों के अलावा बहुत-से सैलानी और मनोरजनप्रिय लोग भी यहां आते है। आज पावू तक पहुंचना उतना दुर्गम नही रहा है, बल्कि वहां तक पहुंचने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा जन जनता की २० हजार रुपये की सहायता से सन् १९२३ से पक्की मोटर की सडक वन गई है। इसलिए आजकल आबू दर्शन के लिए जाने वाले यात्री आबू के मार्ग की उप वीहडता और भयानकता की कल्पना भी नहीं कर सकते, जिसका कि सामना माज से सौ वर्ष पूर्व यात्रियो को करना पड़ता था। आबू का एक कलकित पहलू लेकिन पावू की यात्रा का एक कलकित पहलू भी है जोकि आज पावू के दर्शनो के हेतु जाने वाली तीर्थयात्री जनता के लिए अभिशाप बन जाता है और इसके स्रष्टा है भाबू के शासक सिरोही राज्य के अधिकारी जो आबू के देव-मन्दिरो के दर्शनो के लिए यात्रियो से टैक्स वसूल कर इस धार्मिक तीर्थ को एक प्रकार से व्यापार और धार्मिक जनता के शोपण का साधन बनाए हुए है । पावू जाने वाले प्रत्येक यात्री को १ रु. २३ पैसे टैक्स सिरोही राज्य को देना पड़ता है, तव कही वह अपने इन धर्म-मन्दिरो की सीमा को छू सकता है और इस कर का सारा वोझ उस हिन्दू और जैन सद्गृहस्थ जनता पर पड़ता है, जोकि धार्मिक श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर तीर्थ यात्रा के हेतु यहां आती है । इस टैक्स की विशेषता यह है कि आज यह विना किसी आधार पर ही सिरोही राज्य द्वारा यात्रियो से वसूल किया जाता है । इस टैक्स की कहानी भी विचित्र है। प्रावू में जैन मन्दिरो के शिलालेखो को देखने से पता चलता है कि यहां के मन्दिरो की कलापूर्णता और सुन्दरता देखकर आज से पाच-छ सौ वर्ष पूर्व ही आबू के शासको को सम्भावना दिखाई दी थी कि कोई भी शासक इन मन्दिरो के दर्शन पर कर लगाकर अनुचित लाभ उठा सकता है, अथवा किसी ने उस समय इसी प्रकार अनुचित लाभ उठाने का प्रयत्न किया होगा। इसीलिये पावू के मन्दिरो पर किसी भी प्रकार का कर लेने का निषेध करते हुए ३ शिलालेख जैन मन्दिर [२७५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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