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________________ करली श्रौर सूर्यास्त के पश्चात् अपनी मन्त्र शक्ति के बल से आबू पर्वत पर मार्ग निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया। लेकिन रानी इस शर्त पर भी अपनी कन्या का विवाह रसियाबालम के साथ करने को तैयार न थी, और वे जानती थी । रसिया बालम समय की अवधि के भीतर प्रवश्य काम पूरा कर देगा, तब उन्हे लाचार होकर अपनी कन्या का विवाह उसके साथ करना होगा । उधर रसिया बालम ध्यानमग्न होकर अपनी सारी मन्त्र शक्ति से श्राबू पर मार्ग निर्माण का कार्य कर रहा था, यहाँ रानी ने उसे कर्त्तव्य च्युत करने का निश्चय किया । ज्योही रात्रि का तीसरा पहर समाप्त हुआ और मुर्गे के बोलने का समय निकट श्राया कि रानी ने अवधि समाप्त होने से पूर्व ही मुर्गा बोलने की आवाज लगा दी । रसियाबालम का कार्य पूर्ण ही होने को था कि मुर्गे की ध्वनि सुनकर एकदम निराशा का धक्का खाकर काम छोड़ बैठा, और इस प्रकार रानी के छल से अपनी शर्त पूर्ण करने में असफल हो गया । जब रसियाबालम को इस बात का पता चला कि उसके साथ रानी द्वारा छल किया गया है, तो उसने अपने श्राप से रानी और राजकन्या, दोनो को पत्थर का बना दिया और स्वयं विष खाकर वही मर गया । रसियाबालम की जो मूर्ति आबू मे स्थापित है, वह एक हाथ मे विष का प्याला लिए आज भी खडी दिखाई देती है । उसी के बगल मे राजकन्या की पाषाण मूर्ति है। रानी की मूर्ति तोड डाली गई है और उसके स्थान पर पत्थरो का ढेर देखने को मिलता है । यह है आलू के मार्गो की और उनके निर्माणकर्त्ता की दुखान्त प्रेम-कथा | आज भी आबू पर चढने के लिए बारह मार्ग बतलाए जाते है, कुछ पर आवागमन होता है, कुछ लुप्तप्राय हो गये है । प्रा किसी समय ऐसा ही प्रेमोन्मादक स्थान रहा है । आपको श्रावू पर्वत की भूमि के कण-कण मे ऐतिहासिक और धार्मिक रोमान्चकारी कहानियाँ भरी मिलेगी । आबू के कलासजंक लेकिन घाबू जहाँ ऐतिहासिक काल के राजा-महाराजाओ के लिए नन्दनवन और डास्थली रहा है, वहाँ उन्होने आबू मे अपनी धार्मिक भावनाओ को साकार रूप देने लिए अलौकिक शिल्प और कला की सृष्टि भी की है। उन्होने अपने काल की वैभवशाली शिल्प-कला के अमरचिन्हो के रूप मे मन्दिरो का निर्माण कराकर प्राबू के प्राकर्षण मे चार चाँद लगा दिए है । इस प्रकार आबू की यह कलापूर्णता सोने मे सुगन्ध की उपमा को सार्थक करती है । उन पराक्रमी नरेशो की महत्वकाक्षाओ और धार्मिक भावनाओ के प्रतीक, हमे श्राबू पर्वत पर मन्दिरो देवालयो, मूर्तियो, महलो और ध्वसावशेषो मे, शिला लेखो और ताम्रपात्रो के रूप मे जहाँ-तहा बिखरे मिलते है । हिन्दुओ और जैनो की सम्मिलित कला, धर्म और संस्कृति का यहाँ हमें एक साथ दर्शन होता है । जहाँ जैन महामन्त्री विमलशाह और वस्तुपाल, तेजपाल ने सगमर्भर, शिल्पकला और धातुकला के उत्कृष्ट उदाहरणो के रूप मे विश्वविख्यात जैनमन्दिर निर्माण कराये, वहाँ हिन्दू सम्राटो मे मेवाड उदयपुर के राणाप्रो, चन्द्रावती चौहान के बरानो और सिरोही के तत्कालीन शासको ने भी समय-समय पर ऐतिहासिक कला दर्शक हिन्दू मन्दिर बनवाये । भावू पर्वत पर इन हिन्दू मन्दिरो, देवालयो और धार्मिक तीर्थस्थानो की सख्या सौ के लगभग है, जो जैनियो के स्थानो से तो कई गुणी अधिक है। इन हिन्दू मन्दिरो की निर्माणकला पर भी हमे २७२ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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