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________________ परिवारो के नवयुवक नौकरी की तलाश में दर-दर भटकते फिरते हैं। ऐसे भी कई उदाहरण मिलत है कि हमारी जाति के नवयुवक पेट की ज्वाला के वशीभूत होकर विधर्मी तक बन गए । क्या ऐसी अवस्था को देखकर पाज के पुण्य दिवस पर हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ? भारतवर्ष के व्यापार और कारखाने आदि का बहुत बडा भाग हमारे अग्रवालो के हाथ मे है। यदि यह वनी वर्ग थोडा सा भाग देकर अपनी जाति के बच्चों को अपना ले तो कोई कारण समझ में नहीं आता कि हमारे नवयुवक भी पारसी जाति के युवको से किसी तरह भी कम रहे । हमे पारसी जाति में इसका सवक लेना चाहिये । पारसियो ने अपनी जाति को इतना सगठित कर लिया है और वह अपने नवयुवको की पोर इतना ध्यान देते है कि प्रत्येक पारसी की प्रासन मासिक प्राय १०० २० वताई जाती है और उनमे कोई भी नवयुवक वेरोजगार नजर नहीं आता है। जिला हिसार की तहसील फतेहाबाद एक ग्राम के रूप मे है और इसी स्थान पर उन्होंने अपना शेप जीवन व्यतीत किया । इसी म्यान से हम लोगो का विकास आरम्म हुमा । महाराज अग्रसैन की १८ रानिया थी । उनका पहला विवाह मगध नरेग महाराज कुमुद की पुत्री माधवी से हुआ, दूसरा विवाह चम्पावती के राजा धनपाल की कन्या त्रनपाला में हुआ, तीसरा विवाह परमार के राजा सुन्दरसेन की कन्या मुन्दरावनी से हुया तथा शेप रानिया महाराज कोलापुर की पुत्रिया थी। इन १८ महारानियों से १८ पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके अलग-अलग गुरु थे । इन राजकुमारों की जो सन्तान हुई उनके गोत्र उन्ही राजकुमारों के गुरुमो के नाम से प्रचलित हुए। यह सब कुछ बतलाने में मेरा उद्देश्य यह है कि हम गैप सब बातो को ध्यान में न लाते हुए कि हमे किस धर्म में विश्वास है तथा किस जगह के रहने वाले है, केवल यह ध्यान में रखें कि हम तमाम अग्रवाल एक ही परिवार के है और आपस में एक-दूसरे को माई-भाई समझे। वैश्य भवन मुझे यह बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि देहली जैसे स्थान में जो कि सब जातियो की कार्यवाहियो का केन्द्र है, हमारा कोई स्थायी प्रवन्ध नही, जहा हम आपम मे इकट्ठे होकर प्रेम-भाव वढा सके और हमारे बच्चे व्यायाम कर सकें तथा आपस मै मगठित हो सके, जिससे जाति मे इतनी नवित्त उत्पन्न हो जाब कि समार की कोई भी जाति हमे दवा न सके । क्या ही अच्छा हो कि आप लोग इस प्रकार का कोई भवन निर्माण कर सके, जिममें व्यायाम, दगल, लाठी और गतका प्रादि सिखलाने का प्रबन्ध हो जाए । यदि देहली वाले भाई इस प्रकार का कोई शुभसकल्प करेंगे तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वाहर रहने वाले भाई भी इस शुभ कार्य में अवश्य हाय वढावेंगे। आजकल वैसे तो वकारी चारो ओर ही फैल रही है, परन्तु वैश्य जाति विशेषकर इसका शिकार हो रही है, क्योकि वैश्य जाति के बच्चो मे दुर्भाग्य में यह सन्देह उत्पन्न कर दिया गया है कि वे कोई कार्य, जिसमे शारीरिक वन की आवश्यकता हो, नही कर सकते । यही कारण है कि हमारे बच्चे अभी तक उद्योग-धन्धो, मेकैनिकल लाइन तया फौज व पुलिस मे कोई भाग नही ले रहे है । मेरे विचार में वे कभी भी इतने कमजोर नहीं है, जैसा कि ख्याल किया जाता २६४
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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