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________________ आज के सम्मेलन का अध्यक्ष होने का मान आपने मुझको दिया इसके लिये मैं आपका प्राभार मानता हू । आपके महकार से यह कार्य सफल होगा, ऐमा मेग विष्वाम है। मेरा प्राज के प्रश्न के बारे मे वक्तव्य अग्रेजी मे आपके मामने पेश हो चुका है। इससे आपको मालूम होगा कि यह प्रश्न मारे भारतवर्ष की शारीरिक और आर्थिक उन्नति के लिये कितने महत्व का है । प्राज अपने देश में पूरे दाम देते हुए भी शुद्ध दूध-धी इत्यादि मिलना कठिन हो गया है और मिलावट के द्वारा घोखवाजी चल गई है। इसका मूल कारण यही है कि अपने देश मे शुद्ध दूध-धी की उत्पत्ति कम है और माग अधिक है । उत्पत्ति कम होने का कारण दूध-धी देने वाले पशुओ की सख्या कम और नस्ल खराव होना है। संख्या कम होने के कई कारणो में देश के अच्छे दूध देने वाले पशुओ का नाग मुग्न्य कारण है । यदि दूध देने वाले पशुओ की या वन्द की जाय और उनकी नम्ल उत्तरोत्तर अधिक दूध देने वाली होने लगे तव देश की शुद्ध दूधघी की आवश्यकता पूरी हो सकती है । और फिर मिलावट म्वय ही रुक जायगी। आज देश की यह हालत है कि दूध-घी जैमी पोपक बुराक न मिलने में जनता का स्वास्थ्य विगडता जा रहा है । देश को जिस समय प्रात्मरक्षा के लिये स्वस्थ नवयुवको की आवश्यकता है उस समय दूधघी आदि पोपक खुराक की अपूर्णता से जनता निर्वल हो रही है। इस बात को सरकार और जनता को सोचना चाहिये और इसका इलाज करना चाहिये । देश मे वनम्पति घी और स्कीम मिल्क पाइडर इत्यादि चीजों की मिलावट से शुद्ध दूध-धी का मिलना मुश्किल हो रहा है । इतना ही नही, गावो में किसानो और पशुओ की दयनीय दगा होती जा रही है । शुद्ध घी के व्यापार के कम होने के कारण गाव वालों को लस्सी तक, जो उनकी दैनिक खुराक थी, मिलना कठिन हो गया है। यदि ऐसी परिस्थिति रही तो जनता की शारीरिक और प्रार्थिक स्थिति बहुत बगव हो जायगी और कृपि को बहुत नुकसान होगा। वनस्पति घी इत्यादि के उद्योग करने वाले मज्जन भी दूध-घी के इस प्रकार के अप्रमाणिक व्यापार को नहीं चाहते । शुद्ध वनस्पति घी बनाने वालो को चाहिये कि वह इस सम्मेलन के उद्देश्य की पूर्ति के लिये मम्मेलन का पूरा साथ दे । वनस्पति घी समझकर ही लोग लेवें, इसमे वाधा डालने का सम्मेलन का उद्देश्य नहीं है, लेकिन शुद्ध घी मे धनस्पति घी इत्यादि की मिलावट को रोकना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है । पजाव सरकार ने इम विषय मे जो वनस्पति घी मे रग डालने का कानून बनाया है वह अभिनन्दनीय है । इसी ढग पर जिस-जिस प्रान्त में वनस्पति घी वनता हो वहा विना कानून भी वहा की वनस्पति घी की मिलो के मालिक वनरपति घी को इस प्रकार बना दें जिससे साधारण जनता शुद्ध घी और वनस्पति घी को पहिचान सके और जिससे वनस्पति घी का शुद्ध घी में मिलना असम्भव हो जावे, तब ही उनके लिये वह शोभा का स्थान होगा। हमारे स्वास्थ्य का नाश ऋपि-मुनियों का भारत आज धी-दूध के लिये तरस रहा है और उसके एवज मे मक्खन निकला हुआ दूध तथा वनस्पति घी खाने को वाध्य हो रहा है । यह सब कलयुग का चमत्कार ही २५२ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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