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________________ हुनर अपने दिखाओ तुम अजीज़ो' कीनो वुगजो हसद' दिल से मिटानो तुम । खुशी से कौम की खातिर लहू अपना बहामओ तुम ॥ १ ॥ जो भूखे मर रहे है कुछ इन्हें खाना खिलानो तुम । मुईने वेकसा होकर न इतना जुल्म ढामो तुम ।। २ ।। करो कुछ दीन की भी फिक्र ऐ दौलत के मतवालो। न पीकर वाद-ए पिन्दा' कि खुद को भूल जानो तुम ॥३॥ सखी, जय्याज, दानी, रहमदिल हो नेक खसलत हो । जो रखते हो हुनर मैदान में आकर दिखामो तुम ॥ ४ ॥ जरा तो रहम खामो वेकसो की हो जारी पर। खुदा के वास्ते जुल्मोसितम इतने न ढाओ तुम ।। ५ ।। तसाहुल५ से तुम्हारे हो गये बेधर्म जो लाखो। करो तदबीर कुछ ऐसी उन्हे अपना बनाओ तुम ॥ ६ ॥ तुम्हारे दिल मे गर हुब्बे वतन का जोश बाकी है । बनाकर संगठन अपना हमे भी तो दिखाओ तुम ॥ ७ ।। मसल मशहूर है ऐ दास 'दास' यह सारे जमाने मे। दुवारा फिर गिनो गर गिनते-गिनते भूल जाओ तुम ।। ८ ।। इस धर्म को बचा दो ऐ जैन नौजवानो काहिलपना हटा दो, । उट्ठो कमर को कसके आगे कदम बढा दो ॥ १॥ निकलक की तरह तुम मजहब 4 सीखो मरना, गैरो के आक्रमण से इस धर्म को बचा दो ॥२॥ ऐ सेठ साहूकारो ऊँची दुकान वालो, परचार धर्म का हो कुछ घन को भी लुटा दो ॥३॥ तुम सगठन बनामो छोडो निफाक अपना, हम एक हो गए है औरो को यह दिखा दो ॥ ४ ॥ १. प्यारो २. दूसरो से द्वेष-भाव ३. गरीवो के मददगार ४. गफलत की शराव ५. लापरवाही । ६ हमला ७ फूट । [२३६
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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