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________________ उपदेशामृत कर्म तू जैसा करेगा वैसा साथ अपने कुछ न लाया है फल न ले जव मिटाकर अपनी हस्ती सुर्मा ग्रहले आलम की निगाहो मे समा जाएगा वन जाएगा तू । वुल्ल' सेकारू शिफत क्या खाक फल पाएगा तू । साथ दौलत के जमी मे दफन हो जाएगा तू ॥३॥ ६ चार दिन की जिन्दगी पर मुश्ते खाक नशे बातिल की तरह दुनिया से पाएगा तू । जाएगा तू ॥ १ ॥ इक तेरे ऐमाल ही जायेंगे तेरे साथ-साथ । और क्या इसके सिवा दुनिया से ले जाएगा तू ॥४॥ प्राखिरत की लाज गर चाहे तो नेकी मालोदौलत सब यही पर छोड कर १ कंजूस २ खजाना ३ तरह ४ गडना म दोस्त ६ फना होने वाली दुनिया । तू ॥२॥ जैसी करनी वैसी भरनी यह मसल काम गर अच्छा करेगा अच्छा फल ००० इतना गरूर । मिट जाएगा तू ॥१५॥ ये जो है महवाब तेरे सब बनी के यार है । दारे फानी से अकेला ही फकत जाएगा तू ॥७॥ कर सदा । जाएगा तु ॥ ६॥ दौलतो हशमत मे हरगिज 'दास' मत कीजो घमंड | श्रालमे फानी से खाली हाथ ही जाएगा ॥९॥ मशहूर है । पाएगा हू ||५|| ५ कर्म ६ मुट्ठी भर ७ मिट्टी के पुतले, बुलबुले [ २०५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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