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________________ मानव-धर्म १. दुखिया पनि कोई देखिये, देखत ही दुख होय । दुखिया रोइ पुकारि है-सब गुड माटी होय ।। २. तुलसी हाय गरीव की कवहुँ न निष्फल जाय। मरी खाल की सांस सो, लोह भस्म हो जाय ।। ३. कवीरा सोई पीर है, जो आने पर पीर । जो परपीर न जानिये, सो काफिर बै-पीर । (१) हम विश्वप्रेम के पक्षपाती बने । (२) सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त को अपना आदर्श मानें । (३) मानव समाज मे सद्-भावना और प्रेम उत्पन्न करें। (४) समस्त विश्व को एक परिवार मानकर आगे बढे । (५) आपस के वैमनस्य और द्वेप को इस महान आदर्श के लिए त्याग दें। यह है उस सन्देश की कुछ पक्तिया जो ससार को अनादिकाल से प्रकाश देती आई है। जैन धर्म के २४वें तीर्थङ्कर प्रात स्मरणीय भगवान महावीर ने इस ज्योति से मानवता के एक बहुत बड़े भाग को जगमगा दिया। तब से अब तक विश्व को शान्ति के पथ पर ले जाने के लिए यह एक मार्ग सावित हुआ। अपने नफे के वास्ते, मत और का नुकसान कर । तेरा भी नुकसा होयगा, इस बात पर ध्यान कर ॥ खाना जो खा देखकर, पानी जो पी तो छानकर । या पाव को रख फूककर, और खौफ से गुजरान कर ॥ कलयुग नही करयुग है यह, या दिन को दे और रात ले। क्या खूब सौंदा नकद है, इस हाथ दे और उस हाथ ले ॥ कठिनाईयां आदमी कठिनाइयो में पड़कर ही चमकता है। रत्न रगड़ा जाने पर ही रत्ल प्रतीत होता है । विरोध का उचित रीति से सामना करना प्रादमी के व्यक्तित्व को निखारता है। [ १९५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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