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________________ "वे महावीर अर्थात् महान विजयी इतिहास के सच्चे महापुरुष है । उद्धतता और हिंसा के नहीं किन्तु प्रेम और निराभिमानता के महावीर थे।" --टी० एल० वास्वानी "प्राचीन भारत के निर्माता पुरुषो मे श्री महावीर स्वामी एक थे।" -श्री विजयराघवानन "महावीर की शिक्षा ऐसी प्रतीत होती है मानो वे प्रात्मा की विजय ज्ञार्य हो । जिसने अन्तत इसी लोक मे स्वाधीनता और जीवन पा लिया हो। हजारो आदमी उनकी ओर टकटकी लगाये है । उनको वैसी पवित्रता और शाति की चाह है।" -डा० अल्वेर्टो पाग्गी, जिनोवा (इटली) __ "ससार सागर में डूबते हुए मानवो ने अपने उद्धार के लिए पुकारा। इसका उत्तर महावीर ने जीव को उद्धार का मार्ग बतलाकर दिया। दुनिया मे ऐक्य और शाति चाहने वालो का ध्यान श्री महावीर का उदात्त शिक्षा की ओर आकर्षित हुए विना नही रह सकता।" -डा. वाल्टर शूविंग "महावीर ने भारत में निर्वाण के इस सन्देश का घोप किया कि धर्म रिवाजमात्र नही बल्कि यथार्थता है। निर्वाण पद की प्राप्ति सम्प्रदाय के बाह्य सस्कारो के कर लेने से ही नही हो जाती बल्कि सच्चे धर्म का आश्रय लेने से ही होती है धर्म मनुष्यो के मध्य कोई भेदभाव नहीं उत्पन्न करता । कहने की आवश्यकता नहीं कि इस उपदेश ने जाति-भेद को दवा दिया और समस्त देश को जीत लिया। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैन दर्शन बहुत ही ऊची पक्ति का है । इसके मुख्य तत्व विज्ञान शास्त्र के आधार पर रचे हुए है । ऐसा मेरा अनुमान ही नहीं, पूर्ण अनुभव है। ज्यो-ज्यो पदार्थ विज्ञान आगे बढ़ता जाता है, जैन धर्म के सिद्धातो को सिद्ध करता है और मे जैनियो को इस अनुकूलता का लाभ उठाने का अनुरोध करता हूँ। अहिंसा सभ्यता का सर्वोपरि और सर्वोत्कृष्ट दरजा है। यह निर्विवाद सिद्ध है और जबकि यह सर्वोपरि और सर्वोत्कृष्ट दरजा जनधर्म का मूल है तो इसकी अोर सर्वाङ्ग सुन्दरता के साथ यह कितना पवित्र होगा, यह आप खुद ही समझ सकते है । जैनी लोग अहिंसा देवी के पूर्ण उपासक होते है और उनके आचार बहुत शुद्ध और प्रशसनीय होते है, उनके व्रत और सप्त व्यसन वगैरह बातो के जानने से मुझे बहत खुनी हुई और उनके चरित्र की तरफ मेरे दिल मे बहुत मादर उत्पन्न हुआ । जैन मुनियो के आचार देखने से मुझे वे प्रति कठिन जान पडते है लेकिन वे ऐसे तो पवित्र है कि हर एक के अन्त करण मे बहुत भक्तिभाव और आदर उत्पन्न करते है । ऐसे चरित्र से सर्व साधारण पर प्रभाव पड़ता है। -डा० एल० पी० टेसोटोरो इटालियन -धर्म देशणा से [१३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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