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________________ नाइये महावोर जयंती पर राष्ट्र-निर्माण की प्रतिज्ञा करें वात्सल्य और प्रभावना ग्रंग को फैलायें यह सर्वविदित है कि जैन धर्म किसी एक व्यक्ति विशेष का नही अपितु उस हर व्यक्ति का है जो अपनी इन्द्रियो पर काबू पाकर सासारिक वासनाओ को जीत सके। उसे जिन (इन्द्रियो को जीतने वाला) या जैन कह सकते है । जैन धर्म एक सार्वभौमिक धर्म है और मनुष्य मात्र इसको अपना सकता है। यह आवश्यक नही कि वह किस जाति, सम्प्रदाय अथवा समाज से ताल्लुक रखता है, बल्कि जो उसके सिद्धातो मे विश्वास रखता है और उनका पूर्णरुपेण पालन करता है वह जैन है । आज यह किसी से छिपा नही है कि जैन धर्मानुयाइयो ने समय-समय पर अपनी वीरता व धर्म-परायणता के जो कार्य किए एव देश के निर्माण मे जो अद्वितीय भाग लिया उससे जैन समाज ही का नही वरन् भारत भर का मस्तिष्क ऊंचा हुआ है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक इसके प्रमाण मिलते है । इतिहास इसका साक्षी है । माना कि जैन धर्म एक हिंसक और सर्वपालक धर्म है किन्तु कायरता की भावनाओ वाला नही, वीरत्व की भावनाओ से पूर्ण उदार धर्म है । इसके प्रतिपालक और प्रवर्तक प्राय क्षत्री वीर ही हुए है जिन्होने सदैव जैन धर्म के मुख्य सिद्धातो को पाला । उनका दृढ विश्वास था कि किसी को सताना पाप है किन्तु किसी के द्वारा सताया जाना भी पाप है और इसी को कार्यान्वित भी किया। उन्होने सदियों तक भारत पर शासन किया किन्तु उनके शासनकाल मे किसी भी अन्य राष्ट्र और शासक की हिम्मत न हुई कि वह भारत पर आक्रमण कर सके । यही कारण है कि प्रान भी उनके शानदार कारनामे तथा नाम जिन्दा है । जीओ और जीने दो का सिद्धात मानव-जाति के लिए अमूल्य और एक नई रोशनी देने वाला है । यही कारण है कि हमारा देश ससार मे इस सिद्धात को पूरा करने मे अग्रणी रहा है । यही सिद्धात आज से बहुत समय पूर्व भगवान महावीर ने अपने सदेश में दिया और इस सिद्धात को प्रसारित करने के लिए विदेशो मे भी हमारे बडे-वडे पूर्वज गए । कडो वर्षों की दासता के वाद अपना देश स्वतन्त्र हुआ है । इस स्वातन्त्र्य प्रादोलन मे वही जैन समाज का श्रहिंसा सिद्धात एक शस्त्र था जिसे भारत के देशभक्त जैनो ने घर-घर पहुँचाने की भरसक कोशिश की । बापू और देश के अनेक उत्साही देश सेवको के सद्प्रयत्न से यह अहिंसा - अस्त्र कारगर हुआ । इसी अहिसा के प्रवर्तक और उद्घोपक प्रात स्मरणीय भगवान महावीर का जन्म दिवस इस वर्ष की २८ मई १९५३ को है । इस शुभ अवसर पर, जब कि हम [ १८१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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