SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्वन्धी तथा अन्य कार्यो मे समस्त जैन समाज का प्रभावनाली प्रतिनिधित्व करने की दृष्टि ने किसी ऐसी सस्था की श्रावश्यकता अनुभव की गयी, जो इन कार्यों को सम्पन्न कर नये । फलस्वरूप आज से ६० वर्ष पूर्व भारत जैन महामण्डल की स्थापना की गयी । प्रारम्भिक कार्यकर्ताथो की अपूर्व लगन कार्य की महानता और व्यापकता को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट ही है कि यह को सरल काम नही था । इस कार्य मे अनेक रुकावटें थी । एक तो श्रग्रेज सरकार प्रत्येक वर्ग या क्षेत्र मे 'फूट डालो और राज्य करो" की नीति को श्रमल मे ला रही थी। दूसरे छोटे दायरे में जो प्रतिष्ठा और कोति प्राप्त हो सकती थी, वह विशाल और व्यापक क्षेत्र मे मिलने में कठिनाई थी । तीसरे, आपसी झगडो के चालु रहने मे कुछ लोगो का स्वार्थ था । इन समस्त विपरीत परिस्थितियो के होते हुए भी प्रारम्भिक कार्यकर्तायों ने बड़े उलाह निर्भीकता और लगन के साथ इस कार्य मे योग दिया । इन बाधाओं से वे निरान नही हुए और पूरी शक्ति से इस भागीरथ कार्य को पूरा करने मे जुट गये। इनमे में वैरिस्टर जे एन जैनी, बैरिस्टर चम्पतराय जी जैन, प्रो० के टी शाह, मानकचन्द जी वकील (खण्डचा), वा० शीतलप्रमाद जी, सूरजमल जी जैन (हरदा), वाडीलाल मोतीलाल माह मेठ प्रचलसह आदि के नाम स्वयं अक्षरों मे लिखे जाने के योग्य है । प्रारम्भ मे सभापति के पद पर श्रजितप्रमाद जी जैन (लगनऊ), नेठ माणकचन्द जे पी (बम्बई), गुलावचन्द जी ढहा प्रादि सज्जन रहे और मनिपद मल्हीपुर निनामी मास्टर चेतनदास जी ने सभाला । समस्त जैन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली इम महान् सस्था के निर्माण में इनके बाद सबसे प्रमुख स्थान श्री चिरजीलाल वडजाते का है। अपनी मृत्यु के ममय श्री जे एल जैनी इस नन्ही सस्था को समाज की सेवा साधने के महान उद्देश्य को सम्मुख रन्वते हुए श्री चिरजीलाल जी को सांप गये । उस दिन के बाद श्राप माता के ममान इस सस्था का पालन करते या रहे हैं । आपकी नीति सदैव मितव्ययता से काम लेने और नाम के स्थान पर काम को महत्व देने की रही है। पदो की जिम्मेवारी अपने साथियो पर डाल कर ग्राप सदैव उनके पीछे रहने श्राये है। म चौज ने सस्था को अत्यधिक बल प्रदान कर अनेक नये कार्यकर्त्ता मन्या के लिये उत्पन्न कर दिये हैं । अभ्युदय का युग १९४५ के बाद के काल को सस्था के श्रभ्युदय का युग रहा जाएगा। उस माल मे जैन समाज मे सस्था के लिए आकर्षण वटा 1 मेठ राजमल जी ललवाणी का सहयोग श्री निरंजीलाल जी इससे पूर्व ही प्राप्त कर चुके थे । १९४६ मे माह-परिवार का महयोग भी मन्या पो प्राप्त हो गया। इसके बाद जिन महान उद्योगपति, तपस्वियां श्रादि का सहयोग को मना उनमे से अमृतलाल, दलपतमाह, तपस्विनी शाताबाई, दानवीर मेट श्री मोहनदान से दुमट, वेठ लालचन्द जी हीराचन्द जी, बाबू तन्नमल जी जैन इत्यादि अनेक व्यक्ति सम्मिनित है। [ ६६५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy