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________________ महत्वपूर्ण इस प्रकार है : "अपने जीवन को सादा बनाओ, शारीरिक सुखो मे अपने आपको अधिक न फसाओ, साधना का जीवन हो वास्तविक जीवन है, बुराई से वचो क्योकि उसके बुरे परिणाम होते है", इत्यादि । आज के युग मे भगवान् महावीर के सन्देशो का महत्व आज के अशान्ति और हिंसा से पूर्ण ससार मे भगवान महावीर के सन्देशो का वडा महत्व है | आज अपने विनाश की जिन तैयारियो मे ससार लगा हुआ है, उनको रोकने के लिए भगवान महावीर स्वामी का "श्रहंसा परमो धर्म " सन्देश रामवाण सिद्ध हो सकता है । यह हमे अपने झगडे आपस मे मिलकर निवटा लेने की प्रेरणा देता है । यह हमे परस्पर स्नेह करना सिखलाता है और इस प्रकार उन भीषण अणुशस्त्रो के प्रयोग से हमे रोकता है जिनके द्वारा ससार की भीषण हानि अथवा उसका सर्वेथा विनाश सम्भव है । एक नयी दिशा की ओर अग्रसर उस देश को भी ढाई हजार वर्ष पूर्व के महान् क्रातिकारी की प्रकाश किरणो की प्रत्यधिक श्रावश्यकता है। इनकी सहायता से हमारा मार्ग प्रकाशित रहेगा और नई दिशा की ओर अग्रसर होते हुए हम अधिक भूलें नही करेगे । भौतिक प्रगति के मार्ग की ओर अग्रसर होते हुए हम उस आध्यात्मिक पहलू को नही भुला सकेंगे, जो हमे सच्ची मनुष्यता, आपसी प्रेम और समानता की शिक्षा देता है । स्वयं अपने व्यक्तिगत जीवनो मे भी इन सन्देशो से एक ऐसी मधुरता उत्पन्न कर सकते है, जो हमारे जीवन, पारिवारिक वातावरण और समाज को श्रानन्द से परिपूर्ण कर सकती है । श्राज के परिवर्तित जीवन मे इस आनन्द का प्रभाव अत्यधिक खटकने वाली वस्तु है । आधुनिक शिक्षा स्वावलम्बी और चरित्र परायण बनना ही शिक्षा का उद्देश्य है एक समय था, शिक्षा का उद्देश्य प्रात्मा के सच्चे आभूषण सदाचार से अलकृत कर अपनी सन्तान को सच्चरित्र बनाना था । 'सच्चरित्रता' से तात्पर्य उस सकुचित सीमित क्षेत्र की परिधि से निकल कर 'विश्व बन्धुत्व' को भावना जागृत करना, उसका उचित हृदयाकन करना । जहाँ यह परमोत्तम भावना जगी, अकित हुई कि शेष सामयिक या अनुपगिक सद्व्यवहार अपने आप आ गये । परन्तु अव यह पवित्र उद्देश्य कथामात्र रह गया है, आज की शिक्षा केवल जीविकोपार्जन या स्वार्थ साधन मात्र के लिए रह गई है । अव सत्य का अनुभव होने लगा है। "भारत मे विश्व वन्धुत्व की भावना का हृदय में शिक्षा द्वारा प्रक्ति किया जाता था परन्तु भव तो जिनके बालक होते है उनके मा-बाप [ १५६ समाज को इस कटु सिद्धान्त बालको के
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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