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________________ विक्रयाऋधि (प्राकृति बदलने की शक्ति) प्राप्त थी उन्हे यह वात जानकर बड़ा दुख हुआ। तत्कालं ही वह हस्तिनापुर बारह अगुल के ब्राह्मण का रूप धारण कर पहुंचे तथा राजा बलि को प्रसन्न कर उससे अपने पग से तीन पग पृथ्वी मांगने का वचन लिया। उन्होने अपनी अपूर्व शक्ति से ससार की समस्त पृथ्वी को तीन पग मे नाप कर राजा बलि को अत्यन्त लज्जित कर मुनि सघ की रक्षा कर उनको मृत्यु के मुख से वचाया। तभी से इस त्योहार का नाम रक्षाबन्धन पड़ा। यहाँ पर विचारणीय बात है मुनि विष्णुकुमार का रक्षाभाव जिसके उन्होने अपने ऊपर अधिक से अधिक कप्ट सह कर तथा मुनि पद के कर्तव्य को भी एक वार भूल कर (क्योकि जैन शास्त्रानुसार प्राय. जैन मुनि को प्राकृति बदलने व मांगने का अधिकार नही है) ७०० मुनियो के सघ की रक्षा की। उसी प्रकार हमारा भी कर्तव्य है कि हम हर प्रकार से अनेकानेक आपत्तियों सह कर भी दूसरो की, विशेपतया निर्वलो की, रक्षा करने मे अपने तन-मन-धन को लगा दे। दीपावली भ० महावीर का निर्वाण दिवस भारतीय संस्कृति का समन्वय पर्व भारत मां की गोद मे जब उसके लाडले लाल स्वच्छन्द किलोल करते होगे तव की दीपावली की वात जाने दीजिए । आज भी हम इस दुर्गन्धमय दूपित वातावरण मे जवकि निराकुल और स्वतत्र श्वास लेना दूभर हो रहा है, तब भी भारतीय अपनी माँ की जिस अविरल अविचल भक्ति से दीपदान द्वारा उपासना करते है वह ससार मे अलौकिक और अनुपम है । यो तो सात वार और नौ त्योहार भारत मे सदैव मनते रहे है और मनते रहेगे, मुहर्रम के दिन पहले भारतवासियो ने न देखे थे न सुने थे, [यह दुर्दिन तो परतन्त्र होने पर ही देखने को मिले है] परन्तु दीपावली महोत्सव सव त्योहारो का सम्राट है। इस उत्सव के मनाने मे हिन्दुओ की जिस निष्ठा, श्रद्धा और उत्साह का परिचय मिलता है वह अभूतपूर्व है। दीपावली महोत्सव कार्तिक कृष्णा ३० को प्रत्येक भारतीय के हृदय पर प्रतिवर्ष एक प्रानन्द-सा बखेर कर चला जाता है। इसी पुण्यतिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भारतलक्ष्मी सीता का अपहरण करने वाले राक्षसो का वध करके १४ वर्ष के पश्चात साकेत पधारे थे। साकेत निवासी अपने राम का आगमन सुनकर इसी पुण्यतिथि को मानन्द-विभोर हो उठे थे, उनका मन-मयूर नाचने लगा था। सरयू नदी, जो साकेत वासियो के अश्रुनो को लेकर वन-पर्वतो मे राम को ढूंढती फिरती थी, उसी राम के दर्शन पाकर अठखेलियां करती हुई जन-जन को यह संवाद सुनाने दौडी थी । भारत की खोई हुई निधि और लक्ष्मी को पाकर भारतवासियो ने जो महोत्सव किया था, दीपावलि उसी पुण्यतिथि की स्मारक है। [ १५३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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