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________________ अधिवेशन सतना मे होगा" ऐसा समाचार पढा गया । शीघ्र ही कार्यसमिति द्वारा योजना प्रकाशित की गई । दिल्ली से फिर सतना प्रबन्ध करने आया तो लोगो ने कहा परिषद् का निमत्रण स्वीकारता का मित्र, वीर में प्रकाशित हो गया है । महासभा का कोई जिक्र नही प्राया । मैने कहा मैं उस दिन डाकखाने गया तो सोचने के वाद निश्चय किया कि एक म्यान में दो तलवारे नही श्रा सकती इस वर्ष परिषद् का अधिवेशन सतना मे हो जाने दो, दूसरी वार महासभा का । इस कारण दूसरा पत्र मैने नही डाला था । कुछ लोगो ने अच्छा कुछ ने बुरा भी कहा । परिषद् के सम्बन्ध मे मदिरजी मे अच्छा प्रभाव डाला । स्वागत समिति का निर्माण किया । श्री दयाचन्द धर्मदास को सभापति, उपसभापति क्रमश बनाया। तैयारिया होनी शुरू हो गई । महाराजा' रीवा नरेश से सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रमुख दरवारी लोगो के साथ मैं भी गया । सबने गिन्नी भेट की । मैने श्रीफल और सवा रुपया भेंट कर श्राशीर्वादात्मक श्लोक पढा महाराजा मेरी थोर देख कर प्रसन्न हुए । 1 मेरा परिचय होने के पश्चात् मैने कहा । राजन् ? श्रापके राज्य सतना मे श्राल इडिया दि० जैन परिषद् का अधिवेशन होना चाहता है । असेवली के बडे-बडे नेतागरण आपके राज्य मे पधारेंगे । स्टेट का प्रवन्ध जिनके हाथ मे है उनके पधारने की भी आशा है । महाराजा ने प्रसन्न होकर सतना की राजकोठी खाली करने के लिए कर्मचारियो से कहा । यह भी कहा कि श्रागन्तुक अतिथियों को किसी प्रकार का कप्ट न हो। वे यहां से वुरी भावना लेकर न जावे । सोने-चादी की दो कुर्सी भी भिजवाने के लिए कहा तथा ऊंट, हाथी, घोडे आदि जिस-जिस सामान की जरूरत हो मैं स्वीकृति देता हूँ परन्तु प्रतिथियो को रच मात्र भी कष्ट का अनुभव न हो यह ध्यान रहे । मैने कहा राजन् ! मैं तो आपको पधारने का निमंत्रण देने आया हूँ । महाराजा सा० ने कहा कि मैं जरूर अधिवेशन मे आऊंगा । तुरन्त समाचार पत्रो मे दिये गए। राज्य की ओर से तैयारियाँ शानदार होने लगी तहलका मच गया । विशाल सुन्दर मडप बनाया गया । नाटक का भी प्रबन्ध किया गया । सुन्दर बाजार सजाया गया । तोरण मडप बनाया गया । राजसी ठाठ किया गया । यह चर्चा अ०जैनो मे भी फैली कि जैन रथ मे नग्न मूर्ति निकाली जायगी । ब्राह्मणो ने घोर विरोध किया कि ऐसा नही होने देंगे | हम जेल भर देंगे। तब उन्होने ओझा ( एक जाति होती है जो यत्र-मंत्र मे प्रवीण होती है। जो अपने मत्र बल से रथ को तोड देती है। ऐसा कई जगह हुआ भी है) को बुलाया और जैन के विरोध में नाना तैयारिया होने लगी यह खबर जैन समाज सतना को मिली सब बडे चितित हुए मुझे बुलाया सब हाल कहा ? मैंने कहा चिंता की कोई बात नही है जाकर उस घोभा से कह दो कि हमारे यहा बडे भारी मत्र तत्र वादी विद्वान पधारे हुए है उन्होने कहा कि आपका वडा लडका मरणासन्न है जाकर खबर लो देव की बात कि उनके पास इस विषय का तार आया और वह चला गया तथा उसका बड़ा बेटा मर भी गया उसने थाने से इन्कार कर दिया सकट टला लोगो मे मेरा अत्यधिक विश्वास बढा खूब सम्मान दिया । १४० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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