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________________ लगा। डेढ बजे रात को पूरा सूर्य निकल आया था। चारो ओर धूप ही धूप थी। वह दृश्य देखते ही बनता था । इस प्राकृतिक दृश्य का तारतम्य जैन सिद्धान्त के कणानुयोग से कैसे बैठता है । यह बताने वाले साधन-सूत्र अभी प्रकाश मे नही आए है। बैरिस्टर साहव उन सर्वज्ञ प्रणीत सूत्रग्रन्थ को पाकर फूले न श्रधाते । वे राष्ट्रीयता के सच्चे पोपक थे । वीर की सिंह गर्जना उनमे थो । शान्ति का अर्थ दव्वूपन और अहिंसा से मतलव कायरता के नही । जैनधर्म के लिए स्वार्थत्याग और श्रात्म-बलिदान करने की आवश्यकता है। कोई अत्याचार करे तो उससे दवने की श्रावश्यकता नहीं । अन्याय को हटाने के लिए हमे धर्म रक्षा के लिए लड़ने-मरने को तैयार हो जाना चाहिए। बैरिस्टर साहब ने जैन साहित्य की पूर्व सेवा की वे एक महान् धर्म प्रचारक और परीक्षा प्रधानी श्रावकरत्न थे । हमारा कर्तव्य है कि उनके पद चिन्हो पर चलकर धर्म को जीवन मे उतारे । बैरिस्टर साहब के कतिपय शिक्षा-प्रद श्रावेश प्रत्येक जैन युवक जैन धर्म का ज्ञाता बने । शिक्षित जैनो मे जैनत्व की भावना पैदा हो। जैन धर्म तो पारस पत्थर है जो लोहे के समान प्रशुद्ध जोव को शुद्ध स्वर्ण तुल्य बना सकता है। जैनो की उपजातियों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध होना चाहिए | इससे कई लाभ है । जैन धर्म एक विज्ञान है। कारण कार्य सिद्धान्त पर अवलम्बित है । जैसा वोद्योगे वैसा काटोगे । परन्तु श्राज हम धर्मविज्ञान को भूल गये । वे धन, यश पुत्रके लिए मन्दिर नही जैन मन्दिर भिखारियो के लिए नही । मोक्षाभिलापियो के है धर्मशिक्षा और स्वाध्याय की पद्धति में सुधार होना चाहिए । नई पद्धति से वस्तु का स्वरूप समझने व जानने की जरूरत है। मुख्यतः सात तत्वो को जानने की जरूरत है। वैज्ञानिक शैली से पुस्तकें रची जानी चाहिए। श्रात्मज्ञान, न्याय, समाज शास्त्र, और इतिहास की नई पद्धति पर प्रतिपादन करना चाहिए । सीधे-सादे शब्दो मे युक्ति और प्रमाण के आधार पर आप गजट मे मैत्री प्रमोद, कारुण्य और मध्यस्थ के खिलाफ कोई लेख प्रकट न हो। विद्वानो को विद्वत्तापूर्वक लेख लिखने के लिए प्रेरणा करो । सम्पादकीय विद्वत्तापूर्ण हो । पहले समाज मे जैन सस्कृति मनुष्यमात्र के लिए आदर्श सस्कृति थी । और हर जगह जैनी मनुष्य के नेता थे । वही आदर्श आज हमारे सामने होना चाहिए। और after प्राचीन काल के समान ऊचा करना उचित है। तब पीछे चलेगी । हमको अपनी आवाज दुनिया खुशी से हमारे प्राचीन जैन तत्व की रक्षा कीजिए । समन्तभद्र स्वामी का अपने सामने प्रादर्ण रूप थे । जैन समाज को उन्नत बनाने के लिए ससार मे मुख शान्ति फैलाने के लिए जैन विश्व विद्यालय स्थापित करना आवश्यक है । १३८ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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