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________________ लालाजी एक योद्धा युधकरत्न श्री सत्यंधर कुमार सेठी उज्जैन लाला तनसुखरायजी जैन का स्मृति-ग्रन्थ । प० सत्यन्धरकुमार जी सेठी कुशलनिकालकर दि० जैन समाज ने एक निस्वार्थ | व्यवसायी और निर्भीक वक्ता है। मिशनरी एव कर्मठ कार्यकर्ता के प्रति अपनी श्रद्धा का | भावना से अोतप्रोत जिनशासन के अनन्य परिचय दिया है। लाला तनसुखरायजी जैन का | भक्त है । जैन मिशन के सक्रिय कार्यकर्ता नाम उन पुरुषों की श्रेणी मे ले सकते है | है। वे समाज के ऐसे तेजस्वी उदीयमान जिन्होंने देश, धर्म, समाज और राष्ट्र के लिए | नक्षत्र हैं जिन पर समाज को गर्व है। अपने आपको अर्पित कर दिया है । लालाजी का जन्म एक वैश्य परिवार में हुआ था, लेकिन वे यही तक सीमित नही रहे । वे राष्ट्र और समाज के एक लाइले पुत्र माने जाते थे। सामाजिक क्षेत्र के पहले लालाजी का जीवन राष्ट्रीय क्षेत्र मे अधिक विकसित हुआ। सन् १९१८ मे लालाजी सरकारी नौकरी करते थे । ज्योही पूज्य महात्माजी के नेतृत्व मे ब्रिटिश गवर्नमेट के खिलाफ असहयोग आन्दोलन छिडा, लालाजी इससे प्रभावित हुए और वे नौकरी छोडकर निर्भीक सेनानी की तरह असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े । यह लालाजी का पहला महान् त्याग था। उस वक्त ऐसा करना ब्रिटिश सरकार की दृष्टि मे गहरा अपराध था । लालाजी प्रारम्भ से ही कर्मठ और निर्भीक कार्यकर्ता थे। आपकी कार्यशंली से बड़े-बड़े देश-नेता भी प्रभावित थे। इसलिए थोडे से समय मे ही लालाजी देशनायक प० जवाहरलाल नेहरू व लाला लाजपतरायजी के सपर्क मे आ गये । और आपने डटकर राष्ट्रीय क्षेत्र में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया । वडे-बडे क्रान्तिकारी नेताओं का ध्यान भी आपकी तरफ गया। वे चाहते थे कि लाला स्नसुखरायजी हमारा साथ दें। उस वक्त पजाव मे नौजवान भारत सभा एक क्रान्तिकारी सस्था थी जिस पर सरकार की कड़ी दृष्टि रहती थी। आप उसके सदस्य बने जिससे विटिग सरकार की दो वर्ष तक आपके ऊपर वडी दृष्टि रही। और अन्त मे सन् १९३० मे आपको कारावास का मेहमान बनना पड़ा। इसके बाद आपने एक नही अनेको आन्दोलनो मे भाग लिया, और देश को आजादी मिली। यहाँ तक आप राष्ट्रीय क्षेत्र मे अवाधरूप से कार्य करते रहे जिनमे हरिजन उद्धार हरिजनो के बच्चो के लिए आश्रम बनवाना, रोहतक जिले मे वाढ पीडितो की सहायता करना व कराना। खादी प्रचार समिति व हिन्दी प्रचार समिति प्रादि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ११६ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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