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________________ अधिवेशन बडा सफल रहा। तभी आपके परिपद का मन्त्री चुना गया में हुआ और आप उसकी स्वागत समिति के प्रधान मन्त्री चुने गये । आपके सप्रयत्नो से वह और आप उस पद पर निरन्तर सन् १९३८ तक प्रारूढ रहे । अपने मन्त्रित्व काल मे उन्होने परिषद् का प्रचार एवं उन्नति करने मे अपनी घोर से कुछ न उठा रखा । सन् १९३६ मे भापने जैन कोआपरेटिव बैंक एव जैन कल्व की स्थापना की और उसी वर्ष वीर सेवा मन्दिर" मे मनाई जाने वाली 'वीरशासन जयन्ती' के आप सभापति बनाये गये । उसी वर्ष ग्राप निवखेडा (मध्य भारत ) में भीलो की एक कान्फ्रेंस के सभापति वनकर गये और वहाँ पर आपके व्यक्तित्व एव धार्मिक प्रेम से प्रभावित होकर ५००० भीलो ने मास न खाने की दृढ प्रतिज्ञा की । सन् १९४० मे आप मुजफ्फरनगर में होने वाले परिषद् के अधिवेशन मे सभापति बनकर गये थे । सन् १९४१ मे जब सरकार ने दिल्ली की मस्जिद के सम्मुख जैनियो के जलूस के वा वजने पर रोक लगा दी थी तब श्रापने एक बडा आन्दोलन प्रारम्भ करके सरकार से टक्कर ली और उसमे भारी सफलता प्राप्त की। यही नही, सिकन्द्राबाद ( उ० प्र०) नामक नगर मे जब जैनियो के उत्सव मे कुछ उत्पादियो ने रंग मे भग मे कर दिया था, तब आपके ही प्रयास से उत्पातियो को लम्बी-लम्बी सजाएँ भुगतनी पड़ी थी। इसी वर्ष जब आप धावू पर्वत पर वहां के मन्दिरो के दर्शनार्थं गये थे, तब सिरोही स्टेट द्वारा यात्रियों से भारी कर (टैक्स) वसूल किया जाता था । आपने उस टैक्स का डटकर घोर विरोध किया और कहा - "यह जैनियो पर टैक्स नही वरन् उन पर कलक है। इतना ही नही हमारी स्वाधीनता तथा स्वाभिमान पर कठोर प्रहार है ।" आपके इन प्रेरणात्मक शब्दो को सुनकर जैन समाज जागृत हो उठा और उस टैक्स को समाप्त कराके ही शान्ति की बासुरी बजाई । आपने दिगम्बर जैन पोलिटेक्निकल कॉलेज, बडीत का अपने कर-कमलो द्वारा शिलान्यास करके जैन नवयुवको को तकनीकी शिक्षा देने की विशाल योजना का श्रीगणेश किया। जिस समय भदैनी घाट पर स्थिति स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी के भवन को गंगा नदी के थपेड़े जर्जर कर रहे थे, तथा विशाल जैन मन्दिर की दीवारें डगडगाने लगी थी, तब लालाजी के प्रयास एवं प्रथक परिश्रम के द्वारा सरकार ने उसके उद्धार के लिए पर्याप्त धनराशि देकर सहायता की थी । लालाजी चरित्र चक्रवर्ती श्राचार्य शान्तिसागरजी महाराज के परम भक्त थे । माप अनेक बार उनके दर्शनार्थं जहां कही भी वे होते थे, वही पहुंचा करते थे । उपरोक्त धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त लालाजी ने वनस्पति घी निषेद्ध कमेटी, अखिल भारतवर्षीय मानव धर्म (ह, यूकोनिटेरियन) सम्मेलन, अग्रवाल महासभा, वैश्य कान्फ्रेंस, वैदय महासभा, हरिजन आश्रम की स्थापना, मारवाडी सम्मेलन कलकत्ता, सेवा समितियां, बम्बई जीव, L १०१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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