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________________ ठीक कर रही है ठोस कार्य कर रही है वह समय दूर नही है जब भारतवर्ष के हर - जैनी को इस मे शामिल होकर इसके असूलो पर कार्य करना पडेगा, आखिरकार वाद-विवाद के बाद यह हुआ कि महासभा और परिपद एक हो जावे । विचार किया गया । तै पाया कि श्री महावीर जी मे महासभा और परिषद की मीटिंग करके इस मामले को सुलझाया जावे। इस प्रकार के बीच मे कई बार झगडे आये और सब मे निडर होकर कार्य किये । स्व० श्रीमान दानवीर ला० सेठ हुकमचन्द जैन भी आपका वडा आदर करते थे । श्राप श्राल इण्डिया काग्रेस के भी कार्य कर्ता थे । वहा भी आपने खूब कार्य किया है। आप जैन महामंडल के भी मत्री रह चुके है। इसके अलावा आप और बहुत सी सस्थान के कार्यं कर्ता व सभासद थे | आपने समाज में और बहुत से कार्य किये है जिनके बारे में मुझे जानकारी नही है । मेरी भावना है कि जैन समाज मे ऐसे कार्य कर्ता पैदा होकर जैन समाज के कार्यों को अपने हाथो मे ले । स्वजनों की ओर से श्री जगदीशराय गुप्ता मानसर मंडी भाई साहब तनसुखराय जैन मे सेवक वृति, प्रेम भाव, उदारहृदयता का समावेश जब जवसे मुझे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तभी से मैंने देखा । उनके हृदय मे प्रेम की ऐसी भावना घर कर गई थी जो उन्हें सभी को एक दृष्टि से देखने को लालायित करती थी, जीवन- पर्यन्त उन्होंने काग्नेस की सेवा मे जो भाग लिया वह प्रशसनीय है । मानवता की टूटी-फूटी बिखरी अभिलाषाओं रूपी शृखलाओ को नये रूप मे लाने का साहस भी उन्ही की एक जीती-जागती कसौटी थी - एक महान् आत्मा मानव के रूप मे इस भूलोक पर उतरी थी जो अपनी क्षणिक झलक दिखाकर उस लोक मे चली गई जिसे हम मे से बहुत कम लोग समझने का प्रयत्न करते है । उस दिवंगत आत्मा को मैं शत् शत् प्रणाम करता हूँ । [ ८५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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