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________________ समाज का भी हूँ । इस उद्योग से कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे सबका भला हो, इसी भावना मे उन्होंने अपने जीवन मे सेवा के अनेक कार्य किये जिनमे कतिपय का उल्लेख करना श्रावश्यक है : - महगांव काड में समस्त जैन समाज विक्षुब्ध हो उठा। ढाई माह तक आन्दोलन करने के पश्चात् ग्वालियर सरकार के कान खड़े हो गए जिसमे जान-बूझकर जैन धर्म का अपमान किया गया था। यह जैन समाज की परीक्षा का समय था । अपने सहयोगी दाहिने हाथ युवक हृदय गोलीय जी के साथ परिषद के नेतृत्व मे उस सफलता के साथ कार्य किया कि वह विष का घूंट अमृत वन गया । जैन समाज में क्षत्रिय तेज उमड उठा । सफलता का श्रेय उनके चरणो को म उठा । इस कार्य में लालाजी के अदभुत कार्यशक्ति का परिचय दिया । - प्राबू के मन्दिरो पर सिरोही स्टेट द्वारा लगाया गया टैक्स, टैक्स नहीं है किन्तु कलङ्क है । यह टैक्स हमारी धार्मिक स्वाधीनता में बाधक है तथा स्वाभिमान घातक है। आपके इस पुनीत सदेश से जनता में क्रांति मच गई और टैक्स हटाकर ही शान्ति ली । यह कलक जब तक धुल नही गया तब तक चुप नहीं बैठे । - भा० दि० जैन परिषद, भारत जैन महामण्डल, वैश्य काफेस, अग्रवाल सभा, भारत वेजिटेरियन सोसायटी के तो प्राण ही थे । - दि० जैन पोलिटेक्निकल कालेज (दि० जैन कालेज ) वडीत का शिलान्यास आपके ही कर-कमलो द्वारा हुआ । -५००० भोलो को मासाहार का त्याग कराया । - चरित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी महाराज के वे बड़े भक्त दर्शनो के लिए पधारे। | कई बार उनके - स्याद्वाद महाविद्यालय के भवन को गंगा के थपेडो से जब खतरा उत्पन्न हो गया और भेदनी घाट जर्जर होने लगा, भ० सुपार्श्व नाथ के विशाल मन्दिर के गिरने की आशका पैदा हो गई तो सरकार द्वारा उसके निर्माण की स्वीकारता प्रदान कराई। इस सम्बन्ध मे श्रद्धेय वर्णीजी ने उनके सम्बन्ध मे लिखा कि "इस युग मे आपने महान धर्म का उद्धार करके अपूर्व पुण्य लाभ किया। घाट के कार्य का श्रेय आपको ही है । आपने वडा भारी अद्वितीय दुर्घर कार्य किया। हमारा हृदय आपके इस धार्मिक कार्य को लगन के लिए आपका शुभाकाक्षी है ।" भारत जैसे धर्मपरायण अहिसाप्रिय देश में जहा अधिक जनता शाकाहारी हो वहाँ मांसाहार का प्रचार बढे यह देख सेठ शान्तिकरण आसकरण और श्रीमती रुक्मिरणी अरुण्डेल के नेतृत्व में मिलावट विरोधी काफ्रेंस और शाकाहारी काफ्रेंस की, जिसमे जनता को बताया, यहा के नर-नारी घी-दूध के सेवन से बलवान और बुद्धिमान होते थे । श्राज जो अनेक बीमारियां फैल रही है उसका कारण शुद्ध घी का प्रभाव है। इस सम्वन्ध में आपने बड़ा प्रयत्न किया ।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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