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________________ (७१) स्व समरानन्द । है । अब यह शीघ्र ही मुक्ति कन्यका का वर होगा | अब इसके मीतरी जोशका पार नहीं है । अब यह महान आत्मा वीर रसको झलकाता हुआ स्वसमरानन्दको अनुपम रस पी रहा है। ( ३४ ) • अपूर्वकरण गुणस्थान में बैठा हुमा वीरात्मा अपनी शुद्धोपयोगकी दशा में अनुपम अनुभव रसंका पान करता हुआ किस तरह. उन्मत्त है उसका वर्णन नहीं हो सक्ता । जैसे कोई मनुष्य दूरीपर बैठे हुए अपने मित्रको मिलनेकी मनोकामनासे बढ़ा चला जाता हो और जब वह मित्र निकट रह जाता है तब अपूर्व आनन्दमें भर जाता है उसकी यह आशालता खिल उठती है कि अब मैं शीघ्र ही मित्रसे मिलानेवाला हूं, उसी तरह इस वीरात्माकी दशा है । यह ore क्षपकश्रेणीका नाथ है। मोह राजाकी हिम्मत इसके सामने । पश्त हो गई है । इसको अच्छी तरह भास रहा है कि यह अपनी केवलज्ञानरूपी ज्योतिसे शीघ्र ही मिलेगा । शुक्कुध्यानकी निर्मक तरंगें अव्यक्त रूपसे उठ २ कर इसके चित्तको धो रही हैं। इस वीरकी उज्वल परिणामरूपी सेना दिनपर दिन अति दृढ़ता और साहसमें भरती चली जाती है । यह बात सच है कि जिसकी एक दफे विजय हो जाती है उसका साहस उमड़ जाता है, पर जिसकी कई दफे विजय पताका फहराए उसके साहस व उमंगका क्या कहना । यह वोर संयम अश्वपर चढ़े हुए, उत्तम क्षमाका बख्तर पहरे हुए, ध्यान खड्ग लिये हुए समता के मैदान में इस अनुपमता से कीड़ा कर रहा है और अपनी खड़गकी घारको चमका रहा है कि मोह वीरकी सेना सामने खड़ी हुई
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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