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________________ 2 है और अन्य सर्व ओरसे चित्त हटा कर अपने दलोंके दृढ़ करनेमें उपयुक्त हो जाता है, श्रीविद्याधर गुरुके समीप सम्पूर्ण परिग्रह भारको त्याग बालकके समान विकार रहित होता है और केशोंका कोंचकर पंचमहाव्रत रूपी महान सेनापतिर्योकी सुसं गति प्राप्त करता है । इनकी मददका मिलना कि यकायक प्रत्याख्यानावरणी कषायके दल दबकर बैठ जाते हैं। इस वीरका प्रयाण सातवें गुणस्थान में हो जाता है । जिस जोरके साथ यह इस स्थलपर जाता है उसी जोरके साथ दृढ़ता से जम जाता है, और सारे मोहके दलोंकी हिम्मत हरा देता है । उत्तम धर्म ध्यान शस्त्र बलसे सर्व कर्मोंको कम्पायमान रखता हुआ माप अपने अंतरंगमें सर्व प्रमादको हटा ऐसा हुछासमान रहता है कि. जिसका वर्णन करना असंभव है । आत्माकी शुद्ध परिणतिकी भावना में तल्लीनता प्राप्त कर और अपनेको रूपातीत निरंजन, निर्विकारी, परम गुणधनी, निजामृतसागर और अनंत गुणकाआकर अनुभव कर जो आनन्द प्राप्त कर रहा है वह ज्ञानीके अनुभव ही गोचर है । इसकी सारी निर्बलता इस समय दब गई. है । यह वीर आत्मा समता रसके श्रोतमें ऐसा डूब रहा है कि मोह शत्रुके दल भी इसे देख आश्चर्य करते हैं । इसकी इससमयकी शोभा निराली है, तितिया भी इस छविके निरखने की उत्सुक हो रही है । धन्य है यह - वीर जिसने स्वपुरुषार्थ बलसे: ऐसा उद्योग किया कि दीन हीन दरिद्रीस यान पहना धनका, घनीं स्वसमरानन्दका भोगी हो गया है । -:
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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