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________________ (५६) वसमरानन्द । हैं । जिस कारणसे सारी मोहकी सेना शिथिल पड़ जाती है और अशुभ लेश्याका रंग बिलकुल मिटकर शुभ तीन लेश्याओंका बदलता हुआ रंग इस आत्मवीरकी सेनामें प्रकाशमान होने लगता है । इस समय मोह दलमेंसे भय खाके निम्न प्रकृतिरूपी सेनाके दलोंने अपनी सेनामें वृद्धि करना छोड़ दिया है और इतनी सेनाओंने युद्धक्षेत्रके पृष्ट भागको अवलम्बन किया है। यह क्षायिक साम्यक्ती आत्मवीर इस प्रकार श्रावककी क्रियाओंके वाह्य मालम्चनद्वारा अंतरंग स्वरूपाचरण चारित्रमें अधिक २ वृद्धि कर रहा है और कर्मकलंकसे व्यक्ति अपेक्षा आच्छादित होनेपर भी शक्ति अपेक्षा अपनेको शुद्ध निरंजन ज्ञानानंदमय अनुभव कर रहा है । जिप्स शुद्ध अनुभव के प्रतापसे अपनी विशुद्ध परिणामरूपी सेनाओंको ऐसा सुखी और संतोषी बना रहा है कि उनके भीतर शक्ति बढ़ती चली जा रही है और बारंबार अपने विद्याधर गुरुको नमन करके परमोपकारीके गुणों को अपनी कृतज्ञतासे नहीं भूलता हुमा हार्दिक भक्ति और साम्यभावरूपी परम विचारशील मंत्रियोंके प्रभावसे अपने उदयमें परम विश्वास धार परम भानंदित होता हुआ और मुक्तिकन्याका प्रेरित अनुभूति सखीसे आत्मारूपी आराममें केल करता हुआ जब उसके गुणरूपो वृक्षोंकी शोभामें टकटकी लगा देखते २ एकाग्र हो जाता है तब सर्व विरसोंसे पृथक्भूत निन रसके अद्भुत और अनुपम स्वादको पा उन्मत्त हो स्वसमरानन्दमें बेखबर हो जाता है और उस समयके सुख, सत्ता, बोध और चैतन्यके अनुभवमें एकाग्र हो मानो मात्म-समुमें डूबकर बैठ जाता है।
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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