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________________ (९) स्वसमरानन्द ! मलस्थानमें स्नान तो क्या एक डुबकी मात्र ठहरानको न करने देनेवाले यह पांच भात्म री हैं । पांचोंमें प्रधान मिथ्यात्म सेनापति है, और अन्य चार अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, उस प्रधानके अनुगामी मित्र हैं। इन पांच अफसरों के नाधीन कर्मवर्गणा नामके अनगिन्ती योद्धा युद्धके सन्मुख हो रहे हैं। और अपने तीक्ष्ण उदयरूप बाणों को लगातार उस वीर मात्माफे विशुद्ध परिणामरूपी सुमटोंपर छोड़ रहे हैं परन्तु ये हुमट तत्त्वविचारकी अत्यंत कठिन ढालसे उन बाणों की चोटोंसे बिलकुल बच जाते हैं। और यह सुभट अपने वाणोंको इस चतुरतासे चलाते हैं कि उन पांचों सेनाके सिपाहियोंकी स्थिति कम होती जाती है, तथा उनका रस भी मंद पड़ता जाता है । फेवल इन पांच सेनाओंहीका बल क्षीण नहीं हो रहा है, किन्तु सर्व विपक्षियोंकी सेनाकी कुटिलता और स्थिरता निर्मल होती जाती है। एक मध्य अन्तर्मुहूर्ततक युद्ध करके इस वीरने अपना बहुवसा काम बना लिया है। अब इसके विशुद्ध भावोंकी सेनामें सपूर्व ही जोश, उत्साह और साहस है । सत्य है इस समय इसके योद्धाओंने अपूर्वकरणलब्धिका चल पाया है। अब ऐसी अपूर्वता इसके विशुद्ध परिणामोंमें है कि इसके नीचे के समयका के ई अन्य आत्मा किसी भी उपायसे इसके परिणामोंकी बराबरी नहीं कर सका है, जब कि ऐसी बात इससे पहले अधोकरणमें सम्भव थी। अब समय २ अपूर्व २ अनंतगुणी विशुद्धताकी वृद्धिको धरनेवाले सुभट अपने वाणोंको, तलवारोंको
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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