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________________ ४६ राजपूताने के जैनवीर ...... ..रयपर.. "मेवाड़ की राजधानी पहिले चित्तौड़गढ़ थी परन्तुं बहुगढ़ सुदृढ़ होने पर भी एक ऐसी, लम्वी पहाड़ी पर बना हुआ है। नो अन्य पर्वत श्रेणियों से:पृथक आगई है। अतएव शत्रु उसका घा डालकर हिले वालों के पास वाहर सेरसद श्रादि का. पहुँचना सहज ही बन्द कर सकता है। यही कारण था कि यहाँ कई बार बड़ी बड़ी लड़ाइयों में जिले के लोगों को भोजनादि सामग्री खतम हो जाने पर विवश दुर्ग के द्वार खोल कर शत्रु सेना से युद्ध करने के लिये बाहर जाना पड़ा। इसी असुविधा का अनुभव करके महाराणा उदयसिंह ने चारों तरफ पर्वतों से घिरे हुये सुरक्षित स्थान में उदयपुर नगर बसाकर उसे मेवाड़ की राजधानी बनाया। उदयपुर शहर पीछोला तालाब के पूर्वी किनारे की उत्तर दक्षिण-स्थित पहाड़ी के दोनों पार्श्व पर बसा हुआ है। इसके पूर्व तथा उत्तर में समान भूमि आगई है। जिधर नगर बढ़ता जाता है। शहर पराने ढंग का बना हुआ है और एक बड़ी सड़क को ' छोड़कर बहुधा सब रास्ते व गलियाँ तंग हैं। इस की चारों तरफ शहर पनाह है, जिसमें स्थान स्थान पर चुनें बनी हुई हैं। नगर के - उत्तर तथा पूर्व में जहाँ. शहर पनाह पर्वतमाला से दूर है। एक . चौड़ी खाई कोटा के पास पास खुदी हुई है। शहर के दिक्षिणी भाग में पहाड़ी की ऊँचाई पर पीछोले के किनारे पराने राजमहल बड़े ही सुन्दर और प्राचीन शैली के बने हुये हैं। पुराने महलों में
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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