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________________ आबू पर्वत पर के प्रसिद्ध जैनमन्दिर ३२९ लिखा है, अपनी स्त्री अनुपमदेवी और पुत्र लावण्यसिंह के कल्याणार्थ तेजपाल ने यह नेमिनाथ का मन्दिर बनवाया था। परन्तु उपर्युक्तं चारों पुस्तकों में अपने पुत्र लावण्यसिंह के बदले अपने भाई लूणिग के लिये तेजपाल ने यह मन्दिर बनवाया, ऐसा लिखा है। हमारी समझ में लूणिग और लूणसिंह (लावण्यसिंह) नाम बहुत कुछ मिलते हुए होने से यह गड़बड़ हुई है । तथा तेजपालं का खंद अपने सामने बनवाया हुआ होनेसे प्रशस्ति का लेख ही अधिक विश्वास योग्य है। जिनप्रभसूरि के तीर्थंकल्प मैं इसका रचनाकाल वि०सं०१२८८ लिखा है। इस मन्दिर की जीर्णोद्धारं पेंथड़ नाम के साहूकार ने करवाया था, क्योंकि, इस मन्दिर को भी मुसलमानों ने तोड़ डाला था। इसके जीर्णोद्धार का लेख स्तम्भ' पर खुदा हुआ है । परन्तु इस में संवत् नहीं है। जिनप्रभसूरिने अपने तीर्थकल्प में इसके जीर्णोद्धार का समय श०सं० १२४३ (वि० सं० १३७८) लिखा है । यह बात हम आदिनाथ के मन्दिर के जीर्णोद्धार के वर्णन में लिख चुके हैं। यद्यपि यह पता नहीं चलता कि इन मन्दिरों को मुसलमानों मैं किस समय तोड़ा। तथापि श्रीयुत पण्डित गौरीशंकरजी का अनुमान है कि तीर्थकल्प वि० सं०' १३४९ (ई० सं० १२९२) । और वि० सं०१३८४ (ई० सं० १३२७) के बीच बना था। इसमें इन मन्दिरों का मुसलमानों द्वारा तोड़ा जाना लिखा है । अतएवं वि० सं० १३६६ (ई.सं. १३०९) के आसपास जिस समय
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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