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________________ २८८ राजपूताने के जैन-चीर : धनराज सिंघवी लगादे प्राग न दिल में तो आरजू क्या है ? न जोश खाये जो गैरत से वह लह क्या है ? -चकवस्त" सार एक रंग भूमि है । वैसे तो यहाँ सभी नानारूप में . V अभिनय करते हैं, पर उनमें बहुत कम ऐसे होते हैं, जो अपने अभिनय की याद दर्शकों के हृदय-पट पर अंकित कर सकते हों। धनराज सिंघवी संसार-रंगभूमि का एक ऐसा चतुर अभिनेता था, जिसने मृत्यु के अभिनय में लोगों को चकित कर दिया था। जव मारवाड़ के महाराज विजयसिंह ने सन् १७८७ ईस्वी में अजमेर को पुनः मरहठों से जीत लिया, तव उन्होंने धनराज सिंघवी को अजमेर का गवर्नर नियुक्त किया । किन्तु थोड़े दिन के पश्चात् मरहठों ने अपनी खोई हुई शक्ति को वटोर कर चार वर्ष के बाद फिर मारवाड़ पर आक्रमण कर दिया। राठौडवीर अव ली बार भी खुलकर खेले किन्तु विजय महाराष्ट्रों के भाग्य में थी। इसी मौके पर मरहठों के सेनापति डिवाइन ने अजमेर पर आक्रमण कर दिया और उसको चारों ओर से घेर लिया। यह समय धनराज सिंघवी के लिए अत्यन्त विपत्ति का था, फिर भी : • इस साहसी वीर ने बचे खुचें मुट्ठी भर सैनिकों को लेकर विजयी..
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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