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________________ सूम को ! वीर-नारी.. २६५ पृथ्वी - तो क्या कविता करना छोड़ दूं ? युवती - अवश्य ! पृथ्वी - ध्यान रहे संसार में सब वस्तु मिट सकती हैं, परन्तु कृति नहीं मिटती ! युवती — मैं सौगन्द पूर्वक कहती हूँ कि संसार में सब कुछ मिट सकता है, परन्तु कुल में लगा हुआ कलंक कभी नहीं मिटता । पृथ्वी—कविता से सैनिकों के हृदय में बीर-भाव उत्पन्न होते । चन्दबरदाई का नाम उसकी कविता के कारण अमर हो गया है । युवती - हाँ, यदि कविता में हृदय के भाव हों, और स्वयं कवि भी अपने कथनानुसार कर्मवीर हो तब न ? जब लोगों को यह मालूम होगा कि यह कृति उस अकर्मण्य की है, जो परतंत्रता के बन्धन में जकड़ा हुआ था, जो अपनी बहन का सर्वनाश आँखों से देखता रहा, तब वह आपकी कृति का उपहास करेंगे। चन्द वरदाई का नाम कविता के कारण नहीं, उसकी वीरता के कारण अमर है । पृथ्वी - साहित्य और संगीत से रहित मनुष्य पशु है । युवती - लेकिन यदि किसी घर में आग लगी हो, तो उसके निवासियों को गाते बजाते देखकर तुम क्या कहोगे ? पृथ्वी - मूर्ख कहूँगा और क्या ? युवती - क्यों ? गाना तो कोई बुरी चीज नहीं । पृथ्वी - बुरी चीज नहीं, किन्तु उस समय उसकी आवश्यकता ·
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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