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________________ बच्छावतों का उत्थान और पतन २५१ होकर जगह जगह सम्मान पाते हुये सानन्द बीकानेर आये । इनके सद्व्यवहार से राव कल्याणसिंहजी बड़े प्रसन्न थे।" १४. कर्मचन्दः__टाँक साहब लिखते हैं कि:- बच्छावतवंश का अंतिम महापुरुष कर्मचन्द था । वह राव कल्यानसिंह के मंत्री संग्रामसिंह का लड़का था। जब सन् १५७३ ईस्वी में रायसिंह गद्दी पर विराजमान हुए, तब उन्होंने करमचन्द को अपना दीवान बनाया । करमचंद बड़ा ही विद्वान था । व्यवहारिक ज्ञान में वह बड़ा हस्तकुशल और राज्यनीति तथा शासन में बड़ा चतुर और दक्ष था । रायसिंह को गद्दी पर बैठे बहुत दिन नहीं हुए थे. कि इतने में जयपुर के राजा अभयसिंह ने बीकानेर पर आक्रमण कर दिया । यह समय बड़ा ही गड़बड़ का था। ऐसे भयंकर युद्ध के लिए राज्य विलकुल ही तैयार नहीं था। इस घबराहट और चिंता में राजा ने अपने मंत्री से सलाह की । मंत्री ने अपनी प्रखर बुद्धि . और विचार वैचित्र्य से यही सम्मति दी कि, शत्रु से संधि करली जाय । रायसिंह ने ऐसा ही किया करमचन्द के बुद्धिबल से राज्य की स्थिति ठीक बनी रही और बीकानेर में तब से सदैव आनन्दमंगल रहा। रायसिंह बड़ा हठी और जिद्दी था और प्रत्येक बात पर बिना विचारे शीघ्र ही विश्वास कर लेता था। उसमें सबसे बड़ा अवगुण यह था कि वह किसी बात के परिणाम की ओर ध्यान नहीं * जैन-समंदाय शिक्षा पृ०६४६-४८ ।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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