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________________ १९८ राजपूताने के जैन-चीर सिंहजी के मुख्य मंत्री थे । महाराजा तो विशेषतया देहली रहते थे, इस कारण राज्य के सव कार्य इन्हीं के अधिकार में थे। सं०. १७५० में "वुहारू" गाँव इनको मिला । सं० १७५६ में नव्वाव अब्दुल्लाखाँ जब कृष्णगढ़ में बादशाही थाना जमाने को फौज लें कर चढ़ आया, तब इन्होंने उसके साथ युद्ध करके उसे पराजित किया। सं० १७६३ में स्वर्गासीन हुये। ५. मेहता आसकरणजी: (मोहणजी की २३ वीं पीढ़ी में उत्पन्न) यह महाराज राजसिंहजी के समय सं० १७६५ में मुख्य दीवान नियत किये गये। ६. मेहता देवीचन्द्रजी:-:. ... . . . (मोहणजी की २४ वीं पीढ़ी में उत्पन्न ) यह रूपनगर के महाराज सरदारसिंहजी के समय उस राज्य के मुख्य दीवान थे। ७. मेहतां चैनसिंहजी:__ (मोहणजी की २५ वीं पीढ़ी में उत्पन्न) यह महाराज प्रतापसिंहजी के समय आषाढ़ शुक्ला ७ संवत् १८५३ में कृष्णगइ-राज्य के मुख्य दीवान नियत हुये और महाराज कल्याणसिंहजी के शासनकाल में आजीवन दीवान रहे। यह सच्चे स्वामी. तथा देश भक्त थे। एक बार महाराजा प्रतापसिंह ने प्रसन्न होकर कहा था "चैन बिना सव चोर मुसहो" यह कहावत उस राज्य में अब तक प्रसिद्ध है। इनकी दीवानगी के समय में मरहटों ने उक्त राज्य पर अनेक आक्रमण किये । किन्तु इनकी वीरता और राजनीति के
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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