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________________ [१५]. मंत्री वस्तुपाल के कई चरित्र ग्रन्थ संस्कृत में मिलते हैं, वैसे राजपताने के जैन-चीरोंके नहीं मिलते, यदि मिलते हैं तो नाममात्रके। राजपताने में यह नियम प्राचीन काल से ही चला आता है कि राजकर्मचारी चाहे जैन हो चाहे ब्राह्मण, तो भी उसको यथा अवसर युद्ध में भाग लेना पड़ता था । इसी से राजपूताने के कई जैन-वीरोंने युद्धके अवसरों पर यथासाध्य अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है यह निर्विवाद है। उनके चरित्रों को एक ही स्थल पर संग्रह करना साधारण कार्य नहीं है । इसके लिये पुरातन शिलालेखों एवं प्राचीन पुस्तकों को पढ़कर उनका आशय जानना भी श्रम साध्य कार्य है, जिसका महत्त्व वे ही लोग जानते हैं, जिनको यह कार्य करना पड़ता है। श्री अयोध्याप्रसादजी गोयलीय ने ऋतिपय छपी हुई पस्तकें और कुछ इधर उधर जाकर अप्रकाशित पुस्तकों के आधार पर राजपूताने के कई जैन वीरों के चरित्रों को बटोर कर यह पस्तक तैयार की है। सामग्री का अभाव होने के कारण कई प्रसिद्ध जैन वीरों का उल्लेख ही नहीं हुआ है। तो भी गोयलीयजी का परिश्रम सराहनीय है। उन्होंने राजपताने में जितने भी प्रसिद्ध जिनालय हैं, उनका यथासाध्य वर्णन किया है, जिससे जैन यात्री भी लाम उठा सकेंगे। राजपताना के लिये गोयलीयजी का यह प्रारंभिक कार्य है। कार्य साधारण नहीं है। परन्तु इसमें संदेह नहीं कि उन को परिश्रम भी बहुत करना पड़ा है। यह संग्रह आगे बढ़ने पर शिक्षाप्रद होकर जैन जगत में स्फूर्ति पैदा करेगा और इससे कई अज्ञात् जैन वीरों के चरित्र प्रकाश में आवेंगे। प्रारंभिक कार्य त्रटियों से खाली नहीं होता। गोयलीयजी से भी कई स्थलों पर त्रटियें होना स्वाभाविक है। जिनमें से कुछ का हम यहाँ पर उल्लेख करना आवश्यक समझते हैं । ये त्रुटिये दोष
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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