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________________ १४८ राजपूताने के जैन-वीर नाथजी का वंश मेहता थिरुशाह: इस वंश के पहले सोलंकी राजपूत थे । जैनधर्म के उत्कर्ष के समय सं० ११०० विक्रमी के पास पास जैनधर्म के स्वीकार करने पर इनकी गणना भंडसाली गोत्र के सवालों में हुई । भण्डसालियों में थिरुशाह भण्डसाली बहुत प्रसिद्ध हो गया है । इस गोत्र के लोग मारवाड़ के खिमल गांव में विशेष कर रहते हैं। इस गोत्र की माता खिमल माता और नगारा 'रणजीत' है । शास्त्रोक्त गोत्र भारद्वाज और माध्यन्दिनी शाखा है ! मेहता चीलजी: किसी समय चीलजी नाम के इस वंश में प्रसिद्ध पुरुष हुए जिनको राज्य सम्बन्धी महत् कार्यों के करने के कारण 'महता' पदवी मिली । इसलिए इनका वंश चीलमहता के नाम से प्रसिद्ध है । इस वंश के उदयपुर में ७ तथा मेवाड़ में करीब १० कुटुम्ब होंगे। इससे मालूम होता है कि मारवाड़ से मेवाड़ में आनेवाला एक ही महापुरुष होना चाहिए जिनके ये वंशज हैं। मेहता जालजी -- इतिहास से पता लगता है कि महाराणा हमीर के समय में इस वंश के महता जालजी (जलसिंह ) सोनगरे मालदेव की पुत्री के साथ महाराणा का विवाह होने के कारण उनके कामदार 'प्राईवेट सेक्रेटरी) वन कर सव से पहले मेवाड़ में आये । इन्होंने
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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