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________________ मेवाड़ के वीर . १२१ का शऊर नहीं, वक्मे श्रव में बैठने का सलीका नहीं क्षमा नाम . • मात्र को नहीं, एक दम उजड, जरा किसी ने अपमान किया कि 1 1 विगढ़ बैठे, विचारे का माजना झाड़ दिया। अब वह जमाना नहीं, यह वीसवीं सदी है। आज कल की वज्मेदव और इल्मेमजलिसी में जाने के लिये ही उन्होंने यह सब कुछ सीखा है । यहाँ तो केवल इन छैल छबीले बने ठने महाजन पुत्रों के एक बुजुर्ग का - (जिन्हें यह उजड़ और गँवार समझते हैं) उल्लेख किया जाता है संभव है भविष्य में इन मर्दनुमाँ औरतों का भी चरित्र-चित्रण इसी लेखनी को करना पड़े । मान्य श्रोमाजी लिखते हैं: - "महाराणां संग्रामसिंह द्वितीय सं युद्ध करने के लिये, जब मुग़ल सेना लेकर हावाजखां मेवाड़ पर आया, तब महाराणा की ओरसे भी देवीसिंह मेघावत (वेंगू का ) वगैरह कितने ही सरदार युद्ध-क्षेत्र में भेजे गये। ऐसी प्रसिद्धि है कि वेंगू का रावत देवीसिंह किसी कारण से युद्ध में न जा सका, इस लिये उसने अपने कोठारी भीमसी महाजन को अध्यक्षता में अपनी सैन्य भेजी । राजपूत सरदारों ने उपहास के तौर पर उससे कहा :- "कोठारीजी ! यहाँ आटा नहीं तोलना है" । उत्तर में कोठारीजी ने कहा: “मैं दोनों हाथों से आटा तोलूँ, उस वक्त देखना " । युद्ध के प्रारम्भ में ही उसने घोड़े की लगाम कमर से बान्ध ली और दोनों हाथों में तलवार लेकर कहा - " सरदारो ! अब मेरा आटा तौलना देखो।" इतना कहते ही वह मेवातियों पर अपना घोड़ा दौड़ाकर दोनों हाथों से प्रहार करता हुआ आगे बढ़ा 1 •
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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