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________________ यश न होने के कारण, हमारी क्षमता के अनुसार लाभ में किसी प्रकार की कमी नही रहती इसलिए यहां हमारे निराश होने का तो कोई मौका ही उपस्थित नही होता और न हमारे हृदय में किसी प्रकार का उचाट ही होता है । बल्कि ज्यो-२ हम परमात्मा के निर्मल गुणो के महत्व को अधिकाधिक समझते हुए इस प्रकार से प्राप्त लाभ को देखते हैं त्यो त्यो हमारा शुद्ध प्रेम दिनोदिन शुक्न पक्ष के चन्द्रमा की तरह बढ़ता ही जाता है। इस पर भी कइयो की यह धारणा कि यदि परमात्मा कुछ नहीं करते है तो प्रकृति की जो यह महान उथल-पुथल हम देख रहे है उसका सचालन कैसे हो रहा है ? हमारा भला-बुरा क्यो हो जाता है ? यह अवश्य विचारने लायक है। जैन मान्यता ने अपना दिल खोल कर सभी के सामने कह दिया है कि परमात्मा किसी का भला या बुरा कुछ भी नहीं करते। सब कुछ अपने-२ प्रयत्लो पर ही निर्भर है। प्रकृति पर जब हम दृष्टिपात करते है तो ये बातें हमे बडी गहन लगती है। इतनी विशाल पृथ्वी कैसे थमी हुई है ? ये तारे, यह चन्द्र, यह सूर्य इन सबका नियामक कौन है ? दिन और रात क्यो नियमानुसार होते हैं ? हमारे जन्म और मृत्यु का क्या तात्पर्य है ? आदि। कुछ भी हो इतने शक्ति शाली और आश्चर्यजनक पदार्थो को सभाल कर रखने वाली शक्ति भी कोई महान् शक्ति ही होगी। इस आपार गक्ति के सम्बन्ध में हम क्या सोचे ? आखिर यह रचना है क्या ? इसका क्या महत्व है ? ब्रह्माड के इन रहस्यो का उद्घाटन क्या सम्भव है ? __ अनेक प्रकार के विचार हमारे मन मे उत्पन्न हो सकते है और हमे कुछ सोचने के लिए विवश कर सकते हैं। कहना इतना ही है कि इन विषयो मे हमारा ज्ञान पूर्ण नही है और हम सभी अनुमान को आवार मानकर यह खेल, खेल रहे हैं। कोई इस विपुल शक्ति को देव के नाम से सम्बोधित करते है, कोई इसको शक्ति ही समझ कर सतोप कर लेते है। कुछ भी हो, इतना हम अवश्य अनुभव करते है कि समय-समय पर प्रकृति के प्रकोप हमारे ऊपर आते रहते हैं और हमें सकट में भी डाल देते हैं । प्रकृति में यह अनियमितता क्यो उत्पन्न होती है और क्यो हमारे जीवन के साथ यह खिलवाड़
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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