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________________ कार्य करने के बाद व्यावहारिक दृष्टि से क्या फरक रहा ? सम्भवत कुछ भी नहीं । वकरे मारने वाला वकरे मारने के पान ने वचा और चीटियाँ मारने वाला चीटिय मारने के पाप से बचा । नारे जाने वाले बकरे जान से बचे श्री वर मारी जाने वाली चीटियां जान से वची । यहाँ चीटियो और बकरी का बचना तो विल्कुल ममान हैं । वचने पर दोनो ही अव्रती हर्पित हुए और अपने -२ रान्ते गये * 1 रहा मारने, मारने वालो मे तथा नारना छुडाने वालो में भेद । मारने वालो में-त्रकरे मारने वाले में अधिक समझ है, ज्ञान सहित हिंसा को बुरी समझी हैं, हिना न करने या व्रत लिया है यानी ज्ञान सहित, भाव महित महान् पाप को छोडा है । फिर त पुग्यो के गुणो की अनुमोदना की है, उपकार माना है, saलिए धर्म भी किया है। उधर चीटिये मारने वाला तो अवोध बालक है । जीवो को मारना उसका जरूर बंद हुआ पर हुआ उनकी बिना समझ और सुधार के । वर्तमान मे लाभ इतना ही कि आगे और अधिक चीटियाँ मारने का जो पाप उसे लगता वह उसे नहीं लगा । यहाँ यह भी कोई कह सकता है कि हमारे कठोर व्यवहार में या अपने खेल के अतराय के दुख से क्रोध आने के कारण बच्चे को कुछ पार भी लग नक्ता है पर ऐसा क्रोव तो गुरु-शुरु में प्राय सभी जीवो को हुआ करता है। बकरे मारने वाले को भी उपदेश के समय पहले-पहल उपदेश अच्छा नही लगा हो । सम्भव है गुस्से में उसने भी ऐसा सोच लिया हो - "यह वला कहाँ से आ टपकी, मेरे को नही तो न सही पर बच्चो को तो बहका कर ही छोड़ेगा । क्या इसे और घवा नही है, जाओ दूसरी जगह देखो । ऐसे उपदेश बहुत सुने है, अपना और दूसरो का समय, क्यो नप्ट करते हो, आदि ।” कई बार तो अजानी-बालक ही नही, वडी उमर वाले भी उपदेशको ने मारपीट तक कर बैठते हैं, गालियाँ वक देते है । फिर भी कोई अपना सद्प्रयत्न वद थोडे ही करता है या उसे बुरा थोडे ही मान लेता है । मुनिराजो ने भी अपना प्रयत्न किया और हमने भी अपना प्रयत्न किया। हो सकता है उनका प्रयत्न अधिक मफल रहा हो। पर किमी की शक्ति कम हो या साधन कम हो *भिक्षु दृष्टान्त १४८, पृष्ठ- ६२... कसाई सावांरा गुणगावै मौने हिंसा छोड़ाई तार्यो । बकरा जीवता बचिया ते पिण हरखित हुआ । ७५
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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