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________________ यहाँ प्रश्नकर्ता को भी सोचना चाहिए कि उन्हें अपनी विना पहुँच का उद्देश्य वनाना कैने उचित लगा ? बानक जन्मेगा, वालिका जन्मेगी, नपुसक जन्मेगा, डाकू जन्मेगा, निनव जन्मेगा, या कुछ जन्मेगा नी ? ऐसी अनिश्चितता मे,"सत पुग्प उत्पन्न होगे", ऐना निर्मल उद्देश्य बना डालना हम जैसे साधारण व्यक्तियो वो भाग्नयं चरित किये बिना नहीं रहता। कुछ भी हो, आशा तो अच्छी ही रखनी पाहिए । यह मानना पडेगा कि प्रश्नकर्ता का उद्देश्य बा निर्मल है । सत पुरुष पैदा फग्गे, ननार को इतनी भलाई चाहनेवाले को भला कैने अच्छा न समझे ? परन्तु कभी-नभी ऐमा भी देखने में आता है कि कई कपटी जन, दीन दुखियो के दुख दूर करने के निर्मल उद्देन्य के बहाने, लोगो से धन ठग ले जाते है। हमें वह नो विश्वास करना ही होगा कि हमारे प्रश्नकर्ता गायद ऐसे कपटी नहीं है। मरन स्वभाव मे ही उन्होंने यह वात नोची होगी। प्रश्नकर्ता निश्चय हो नरल हदयी होगे, ऐमी आगा है। क्या मै प्रश्नकर्ता को पूछनगना है-इन निर्मल उद्देश्य की प्रोट में आपका हेतु विपय सेवन का तो नहीं है । विषय भोग ने तो आपको पूर्ण घृणा है ? क्या आप उन साघु मुनिराज कोतरह है, जो रसीली यम्नुमो का सेवन करते हुए भी उनका रस नहीं लेते ? आप सम्पूर्ण भोग नीरस भाव मे हो भोगेगे? आपकी भार्या जितने बच्चे उत्पन्न कर सकती है उममे अधिक भोग, भोगने की तो आपकी भावना नहीं है? वे भोग भी, मिर्फ निर्मल उद्देश्य पूतिके लिए अत्यन्त नीरम भाव से ही, आप भोगेगे?"हे सौभाग्यवान | यदि हाँ भरते हुए आप सत्य बोलते है तो आप नर-भव को सफल बना रहे है और हमारे आदर के पात्र हैं । आपके मद्-प्रयत्न की कृपा से, आपके जन्मे बच्चों के माथु बनने के बाद आपका कल्याण होगा या नहीं यह ज्ञानी जानें, पर ममार मे अन्य अनेको का तो भला ही होगा। यदि आप अपने उद्देश्य में सफल हुए तो निश्चय ही तीर्थकरो या माधु-सतो के माता-पिता की प्रशसा की तरह, हम आपको भी प्रगमा करने मे नहीं चूकेंगे। यदि आप असफल हुए तो भी, किसके हाय की वात, कोई अफसोम नहीं। आपकी परम उत्तम भावना को लक्ष्य में रखते हुए, हम यह समझ कर सतोप कर लेंगे कि आप अधिक घाटे से तो वचे। मापने कम-से-कम, वहतो से तो अनेक गणा ज्यादा विपय भोगो को छोडा और जो अपनाने पडे उनमें भी नीरस भाव रखा। आपका निर्मल उद्देश्य आपको ठीक रास्ते पर ही ले गया। आपके विषयो में कमी ही आई। पर हे देवानुप्रिय !
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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