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________________ निवेदन जैन, बौद्ध, वैदिक - भारतीय संस्कृतिकी इन प्रमुख धाराओका अवगाहन किये बिना अपनी आर्यपरम्पराका ऐतिहासिक विकासक्रम हम जान नही सकते । सभ्यताकी इन्ही तीन सरिताओकी त्रिवेणीका संगम हमारा वास्तविक तीर्थराज होगा और ज्ञानपीठके साधकोका अनवरत यही प्रयत्न रहेगा कि हमारी मुक्तिका महामन्दिर त्रिवेणीके उसी सगम पर वने ; उसी सगम पर महामानवकी प्राणप्रतिष्ठा है। लुप्त ग्रन्थोका उद्धार, अलभ्य और आवश्यक ग्रन्थोका सुलभीकरण, प्राकृत, अपभ्र श, कन्नड और तामिलके जैनवाक्प्रयका मूल और यथासम्भव अनुवादरूपमे प्रकाशन, ज्ञानपीठ ऐसे प्रयत्नोमे लगा हुआ है और वरावर लगा रहेगा । इन कार्योके अतिरिक्त सर्वसाधारणके लाभके लिए ज्ञानपीठने 'लोकोदय ग्रन्थमाला' की योजना की है। इस ग्रन्थमालाके अन्तर्गत हिन्दी में सरल, सुलभ, सुरुचिपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित की जायेंगी । जीवनके स्तरको ऊचा उठानेवाली कृतिके प्रत्येक रचयिताको ज्ञानपीठ प्रोत्साहित करेगा, वह केवल नामगत प्रसिद्धिके पीछे नही दौडेगा । काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, इतिहास - पुस्तक चाहे किसी भी परिधिको हो परन्तु हो लोकोदयकारिणी । प्रस्तुत पुस्तक 'जैनशासन' मे जैनधर्मके प्रमुख सिद्धान्तोका परिचय और जैन सस्कृतिकी विभिन्न प्रगतियोका आधुनिक दृष्टिकोणसे दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया गया है। पुस्तक की विशेषता इसकी शैली और विषय के प्रतिपादनमें है। जैनधर्म पर कई परिचयात्मक पुस्तके लिखी गई है। यह पुस्तक उसी दिशामे एक और अगला कदम है। लेखक दिगम्बर समुदायके ख्यातनामा विद्वान् है । परम्परागत मान्यताओंके विषयमे उनका दृष्टिकोण स्पष्ट है । उन्होने अनेक शास्त्रीय गहन विषयोको सरल
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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