SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'जैन शासन' पर लोकमत "जैनशासन देख लिया। जैनधर्मके बारेमे काफी जानकारी उसमेसे मिल जाती है। जैन विचार नि संशय प्राचीनकालसे है।" ____-बिनोवा भावे "इस पुस्तकमे जैनधर्म, दर्शन और साहित्यका वड़ा सुन्दर अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। पुस्तकमे दी हुई असंख्य टिप्पणियोसे लेखकके विशाल अध्ययनका पता चलता है । जैन-साहित्यके सामान्य रूप और विस्तारको समझने के लिए पुस्तक उपयोगी और संग्रहणीय है।" -विश्वभारती, शान्तिनिकेतन "जनशासन लिखकर आपने अपने धर्म और साहित्यकी अच्छी सेवा की है।" -मैथिलीशरण गुप्त "इस प्रकारके साहित्यकी आधुनिक हिन्दीमे आवश्यकता है।" __-डा० रामकुमार वर्मा, एम० ए०, पी-एच० डी० "जनशासन सुरुचिपूर्ण तथा शिक्षाप्रद है।" __-मध्यप्रान्तके माननीय गवर्नर पकवासा "जनशासनमे जैनधर्मके सिद्धान्तोंका विशद विवेचन है। पुस्तक काफी परिश्रमसे लिखी गई है। भाषा परिमार्जित और आकर्षक है। पुस्तक उपादेय है और इससे एक आशिक अभावकी पूर्ति हुई है।" -'वीरवाणी' जयपुर "जैनधर्मके सम्बन्धमे बहुतसी जानकारी इस पुस्तकसे मिल सकती है।" -'संगम' वर्धा - - -
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy