SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૪૨૭ धर्म दयामूलक है तथा जीवधारियोंपर अनुकम्पाका भाव रखना दया है । स्वामी समन्तभद्रने चर्ती तीर्थकर शान्तिनाय भगवान्के धर्मचक्रको 'दया दशेषितिर्मचक्र" - करुणाको किरणो से संयुक्त धर्मचक कहा है। नवमी सदी के महाकवि जिनसेनने जैनधर्मके प्रथम तीर्थंकर भगवान् वृषभदेवको प्रणामांजलि अर्पित करते हुए लिखा है कि "वे श्रीतमन्वितः संपूर्ण ज्ञान साम्राज्य के अधिपति, धर्मचक्के धारक एवं भव- भयका भंजन करनेवाले हैं।" इसको 'सर्व-सौज्यप्रदायी' कहा गया है। अहिता विद्याकी ज्योति द्वारा विश्वको आलोकित करनेवाले वृषभनाथ आदि महावीर पर्यन्त चौवीस तीर्थकरोका बोध करानेवाले चौवीस आरे अशोकचक्रमें पाए जाते है । यह बात विश्वके इतिहासवेत्ता जानते है, कि अहिंसा महाविद्याका निर्दोष प्रकाश जैन तीर्थंकरोसे प्राप्त होता रहा है । आइने अकवरी आदिसे ज्ञात होता है कि अशोक के जीवनका प्रारंभ काल जैनधर्मसे सम्बन्धित रहा है । भारतके प्रधान मन्त्री पं जवाहरलाल नेहरूने' अमेरिकावासियोको राष्ट्रध्वजका स्वरूप समज्ञाते हुए कहा था कि यह चक्र उन्नति और धर्म मार्ग पर चलने के आह्वानको द्योतित करता है । भारतकी आकाक्षा है कि वह चक्र द्वारा प्रकाशित आदर्शका अनुगमन करे ।' यदि भारत राष्ट्र धर्मचत्र गौरवक अनुरूप प्रवृत्ति करने लगे, तो एक नवीन मंगलमय जगत्न्न निर्माण होगा, जहा शक्ति, सपत्ति, समृद्धि तथा सपूर्ण उज्ज्वल कलाओका पुण्य समागम होगा । अभी जो अधिकतर अहिंसाका जयघोष सुनाई पड़ता है, उसका तोते द्वारा राम नाम पाटसे अधिक मूल्य नहीं है । जब तक लोकनायको तथा ग्राम कल्याणपत्र १. “The Chakra signifies progress and a call to tread the path of righteousness. India wished to follow the ideal symbolised by the wheel." -Speech at Vancouver (America) vide Statesman. 6-11-19.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy