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________________ जनशासन द्वारा ईश्वरका वहिष्कार तक किया गया, वेचारे धर्मकी बात तो जाने दीजिए। रूसी लेखक दास्तोइवस्की एक कदम आगे बढाकर लिखता है-“ईश्वर तो मर चुका है, अब उसका स्थान खाली है।" शायद उस जगहके लिए रूस "अणुबम" परिवारमेसे किसीको चुनकर आराधना करे, ऐसा ढग दिखता है। पूर्वोक्त कथनमे अतिरेक होते हुए भी निष्पक्ष दृष्टिसे समीक्षकको उसमे सत्यताका अश स्वीकार करना ही होगा। देखिए, श्री विवेकानन्द अपने राज-योगमे लिखते है-"जितना ईश्वरके नामपर खूनखच्चर हुआ उतना अन्य किसी वस्तुके लिए नहीं।" जिसने रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेट नामक हजरत ईसाके माननेवालोका रक्त-रजित इतिहास पढा है अथवा दक्षिण-भारतमे मध्य-युगमें शैव और लिंगायतोने हजारो जैनियोका विनाशकर रक्तकी वैतरणी वहायी तथा जिस बातकी प्रामाणिकता दिखानेवाले चित्र मदुराके मीनाक्षी नामक हिन्दू मन्दिरमे उक्त कृत्यके साक्षी स्वरूप विद्यमान है, ऐसे धर्मके नामपर हुए क्रूर-कृत्योपर दृष्टि डाली है, वह अपनी जीवनकी पवित्र श्रद्धानिधि ऐसे मार्गोके लिए कैसे समर्पण करेगा? धर्मान्धोकी विवेक-हीनता, स्वार्थ-परता अथवा दुर्बुद्धिके कारण ही धर्मकी आजके वैज्ञानिक जगत्मे अवर्णनीय अवहेलना हुई और उच्च विद्वानोने अपने आपको ऐसे धर्मसे असम्बद्ध बतानेमे या समझनेमे कृतार्थता समझी। यदि धर्मान्धोने अमर्यादापूर्ण तथा उच्छृखलतापूर्ण आचरण कर सहार न किया होता तो धर्मके विरुद्ध ये शब्द न सुनायी पडते। ऐसी स्थितिमे इस वातकी आवश्यकता है कि भूमकी भँवरमे फँसे हुए जगत्का उद्धार करनेवाले सुख तथा शान्तिदाता धर्मका ही उद्धार किया जाय, जिससे लोगोको वास्तविकताका दर्शन हो। १ देखो, जर्मन डॉ० वान् ग्लेप्नेसका जैन-धर्मसम्बन्धी ग्रंथ Jainimus P. 64.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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