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________________ विश्वसमस्याएँ और जैनधर्म आज यन्त्रवाद (Industrial Revolution) के फलस्वरूप विश्वमे अनेक अघटित घटनाओ और विचित्र परिस्थितियोका उदय हुआ है। उसके कारण उत्पन्न हुई विपत्तियोसे व्यथित अन्त करण विश्वगान्ति तथा अभिवृद्धि निमित्त धर्मका द्वार खटखटाता है और कहता है कि हमे उच्च तत्त्वज्ञान और गभीर अनुभवपूर्ण दार्शनिक चिन्तनाओवाले धर्मकी अभी उतनी जरूरत नहीं है, जितनी उस विद्याकी, जो कलह, विद्वेष, अशान्ति, उत्पीडन आदि विपत्तियोसे वचाकर कल्याणका मार्ग बतावे । जो धर्म मर्दुमशुमारीकी विशिष्ट वृद्धिके आधारपर अपनी महत्ता और प्रचारको गौरवका कारण बताते है, उनके आराधकोकी बहुसख्या होते हुए भी अशान्तिका दौरदौरा देख विचारक व्यक्ति उन धर्मोसे प्रकाश पानेकी कामना करता है, जिसकी आधारशिला प्रेम और शान्ति रही है, और जिसकी वृद्धिके युगमे दुनियाका चरित्र सुवर्णाक्षरोमे लिखने लायक रहा है। ऐसे जिज्ञासु विश्वकी वर्तमान समस्याओके बारेमे जैनशासनसे प्रकाश प्राप्त करना चाहते है। अत आवश्यक है कि इस सम्बन्धमे जैन तीर्थंकरोका उज्ज्वल अनुभव तथा गिक्षण प्रकाशमे लाया जाय। धर्म सर्वागीण अभ्युदय तथा शान्तिका विश्वास प्रदान करता है, अत मानना होगा, कि प्रस्तुत समस्याओकी गुत्थी सुलझानेकी सामर्थ्य धर्ममे अवश्य विद्यमान है । इतिहास इस वातको प्रमाणित करता है, कि चन्द्रगुप्त मौर्य सदश जैन-नरेशोके शासनमे प्रजाका जीवन पवित्र था। वह पापसे अलिप्त-प्राय रहती थी। वह समृद्धिके शिखरपर समासीन थी। वर्तमान युगमे भी इस वैज्ञानिक धर्मके प्रकाशमे जो लोग अपनी जीवनचर्या व्यतीत करते हैं, वे अन्य समाजोकी अपेक्षा अधिक समृद्ध, सुखी तथा
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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