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________________ पुण्यानुवन्धी वाड्मय ३८३ जिहि पास नहीं परमेसुरकी , मिलि पास करो सु अकबर की ॥" दुनियामे ऐसा कौन है, जो झूलेसे परिचित न हो ? कवि वृन्दावन एक ऐसे विलक्षण तथा विशाल लोक-व्यापी झूलेका वर्णन करते है, जिसमें सभी ससारी घूमते है। एक तत्त्वज्ञानी ही झूलेके चक्करसे बचा है "नेह ौ मोहके खंभ जाम लगे, चौकड़ी चार डोरी सुहावे । चाहको पाटरी जास पै है परी, पुण्य औ पाप 'जी' को झुलावे॥ सात राजू अधो सात ऊँचै चले, सर्व संसारको सो भमावे। एक सम्यक ज्ञानि ही झूलना सौं, कूदिके 'वृन्द' भव पार जावे ॥" -छन्दशतक ७६ । इस झूलेका वर्णन कविने झूलना छन्दमे ही किया है यह और मनोहर बात है। भैया भगवतीदासजी सुबुद्धि रानीके द्वारा चैतन्यरायको समझाते है कि अमूल्य मनुष्यभवको प्राप्तकर आत्माका अहित नही करना चाहिये। कितना सरस तथा जीवनप्रद सवाद है "सुनो राय चिदानन्द, कहो जु सुबुद्धि रानी कह कहा बेर बेर नैक तोहि लाज है। कैसी लाज ? कहो, कहां, हम कछु जानत न हमें इहां इन्द्रिनिको विष सुख राज है।" इस पर सुवुद्धि देवी पुन कहती है "अरे मूढ, विषय सुख सेये तू अनन्ती बार अजहूँ अघायो नाहि , कामी शिरताज है। मानुष जनम पाय, प्रारज सुखेत आय, जो न चेतै, हंसराय तेरो ही अकाज है।" अपने स्वरूपको तनिक भी स्मरण न करनेवाले आत्माको कितनी ओजपूर्ण वाणीमे सज्ञान करनेका प्रयत्न किया गया है। 'भैया' कहते है
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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