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________________ ३५८ जैनशासन अथवा मेघदूत और पाश्र्वाभ्युदयका तुलनात्मक अध्ययन सदृश रचनाए प्रकाशित नहीं हुई। सहृदय मामिक विद्वान् प्रो० पाठक' जिस पार्वाभ्युदयको मेघदूतकी अपेक्षा विशेप कवित्वपूर्ण रचना ससारके समक्ष उद्घोपित करते हैं, उसके प्रति जैन समाजकी उपेक्षा अथवा अन्य लोगो की अनासक्ति इस तथ्यको समझनेमे सहायता प्रदान करती है, कि महत्त्वपूर्ण, गभीर तथा आनन्ददायी जैन साहित्यका अप्रचार क्यो हुआ तथा लोक उसकी गरिमासे क्यो अपरिचित रहा और अब भी अपरिचित है ? पार्वाभ्युदयकी महत्ताको 'प्रकाशित करने वाला यह पद्य प्रत्येक उदार श्रीमान् एव विद्वान्के लक्ष्यगोचर रहना चाहिये "श्रीपाश्र्वात् साधुतः साधुः कमठात् खलतः खलः। पार्वाभ्युदयतः काव्यं न च क्वचन दृश्यते ॥" साधुतामे भगवान् पार्श्वनाथके सदृश अन्य नहीं दिखता है और दुष्टता करनेमे कमठके समान कोई और नही है। पार्श्वनाथ भगवान्के अभ्युदयका वर्णन करने वाले पार्वाभ्युदय काव्य सदृश रचना अन्यत्र नहीं है। ___ महाकवि हरिचन्दका धर्मशर्माभ्युदय जैसा अनुपम रत्न अबतक सुसपादित तथा अनूदित होकर जगत्के समक्ष नही आया। यही बात उनके जीवन्धरचम्पके विषयमे चरितार्थ होती है। संस्कृतज्ञोके ससारमे वाणकी यह सूक्ति सुप्रसिद्ध है कि हरिचन्द्र महाकविकी गद्य रचना श्रेष्ठ है-'भट्टारहरिचन्दस्य गद्यबन्धो नृपायते'। महाकवि अहहासका पुरुदेवचम्पू अत्यन्त मनोहारिणी, पाडित्य एव कवित्व पूर्ण रचना है। मुनिसुव्रतकाव्यकी रचना भी अत्यन्त सुन्दर है। १. “The first place among Indian poets is alloted to Kalidas byconsent of all. Jinasena the author of पाश्वर्वाभ्युदय claims to be considered a better genius than the author of Cloud Messenger मेघदूत'-Prof K. B. Pathak.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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