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________________ पराक्रमके प्रागणमे ३३७ । पुलकेशी नामक जैन नरेशका नाम विशेष विख्यात है। अपने शिलालेख मे कालिदासका उल्लेख करनेवाले जैनकवि रविकीति द्वारा निर्मित ऐहोलके जिनमदिरको पुलकेशीने सहायता प्रदान की थी। विमलादित्य, विजयादित्य, विनयादित्य, तैलप, जयसिंह तृतीय आदि जैन नरेशोके शासनमे जैनशासन खूब विकसित रहा। कलचुरि नरेशोमे महामडलेश्वर बिज्जल अपने पराक्रम और जिनेन्द्रभक्तिके लिये विख्यात थे। उनके पुत्र सोमेश्वरने भी जैनधर्म की बहुत सेवा की और लिगायतोके अत्याचारोसे उसे बचाया। 'जैन नरेश बिज्जल महाराजके मत्री वसवराजने लिंगायत धर्मकी स्थापना की थी। उसने विज्जलके प्राणहरण करने के लिए शीलहार नरेशसे युद्ध करते समय छलकर विषदूषित आम खिलाए। किन्तु सुचतुर वैद्योके प्रयत्नसे विज्जलकी मृत्यु न हुई। पश्चात् जब वसवका पता चलाया गया तब उसने कुए मे गिरकर अपने प्राण गवाया। दोरसमुद्र (Mysore) के शासक होयसाल नरेश जैन थे। उन्हे सम्यक्त्व-चूडामणि, दक्षिण चक्रवर्ती आदि पदोसे समलकृत किया गया था। महाराज विनयादित्यके जिनभक्त पुत्र एरयग महान् योद्धा थे, उनने श्रमणबेलगोलाके जिनमदिरोका जीर्णोद्धार कराया था। बल्लाल द्वितीयने बारहवी सदीमे मैसूरमे राज्य किया। इनकी महारानी शातला देवीने श्रमणबेलगोलामे सवतिगधवारण वसदि (मदिर) वनवाकर वहा शातिनाथ भगवान्की मनोज्ञ मूर्ति विराजमान कराई थी। { King Bijjal ruled peacefully with gloy He built many a Jain temple His exploits as a warrior as well as suppoiter of the faith are well nariated in a Kanarese work called Bijjal Charite He was succeeded by his son, Someshwara, who also was a supporter of Jainism and saved it from the onslaughts of the Lingayats. ---Rice, Mysore & Coong.pr9 २२
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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