SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ লায়ল महावंश काव्यले जात होता है कि वर्तमान सीलोन-सिंहलकी राजधानी अनुरावपुरमें जैन मंदिर थ जो स्पष्टतया सिंहल द्वीप में न प्रभावको सूचित करता है। महाप्रतापी एलसम्राट् नहामेघवाहन खारवेल नहाराज जैन थे। उन्होने उत्तर भारतके प्रतापी नरेन पुष्यमित्रको पराजित किण था। नंदनरेगोंकि यहा भी जैनधर्मकी मान्यता थी। यह वात हायागुताके गिलालेखसे विदित होती है। दक्षिण भारतके इतिहासपर दृष्टि बालनसे बात है कि प्रतापी नरेन तथा गंगराज्यके स्थापक नहाराज कोगुणी धर्मनने बाचार्य सिंह नंदिके उपदेनसे गिवमग्गाके समीप एक जिन मदिर बनवाया था। इनके वनज अविनीत नरेनने अपने मस्तकपर जिनेद्र भगवान्की मूर्ति विराजमान कर कावेरी ननीको वाड़की अवस्थाने पार किया था । एक गिलालेखमें इन्हे गौर्यकी मूर्ति नया गज, अन्व एवं धनुर्विचामे प्रदीप वताया है। उनके उत्तराधिकारी विनीत नरेन प्रभु, मंत्र और उत्साहभक्तिसमन्वित महान् योद्धा तया विद्वान् थे। महाराज नीतिनार्ग और बूतग जिनधनं परायण राजा थे। बूतग नास्त्रज और मलन विल्यात था। महाराज मारसिंह गगवनाके निरोमणि पराक्रमी निक, वार्मिक जैन नरेत्र थे। पात्री जननें कदव नरेन मृगेन वना और उनके पुत्र रविवर्मा अपने पराक्रम और जैनधर्मके प्रेनके लिए प्रत्यात १ वान ग्लेसनेपके जैनीनसका हिंदी अनुवाद पृष्ठ ६० देखो। २ "येन संप्रतिना......लायुवेषपारिनितिकरजनप्रेषणेन अनार्यदेशेऽपि साविहारं कारितवान् । __-परतरगच्छादलिसंग्रह पृ.० १७ ॥ 2. Jediaeral Jainism pp. 10-30.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy